अपनी किरणों से नहलाऊं, और तुम सराबोर हो कर सुनहरी किरणों के सौन्दर्य से फूलों की तरह खिल उठो और एक सदी तक महकती रहो, और मैं सदी के अंत तक तुम्हें अपनी किरणों से नहलाता रहूँ ।
ख्वाब देखने मे और जीने की जद्दोजहद मे कब बीत गयी ज़िंदगी पता ही ना चला,
अब वक़्त बहुत कम है और काम ज्यादा करने को इतना कुछ बाकी है कि लेने होंगे कई और जन्म,
उन सब का कर्ज चुकाना है जिन्होने दिया स्नेह और दी खुशियाँ जिन्होने दिया जन्म और सिखाया चलना जिन्होने दिखाई राह और सिखाया जीना जिन्होने दिया दर्द और सिखाया रोना,
और हँसना और हँसाना भी तो है जो कि अब तक मैं नहीं कर पाया।
मेरी १० वर्षीया बेटी मेघा की रचना जो कि उसके विध्यालय की इयर बुक में छपी है, इसे पढ़कर मैं आश्चर्यचकित हूँ कि एक 10 साल की बच्ची भी ऐसा सोच सकती है। मुझे गर्व है अपनी बेटी पर।
MEGHA
What is life? Nothing but a contract Which we sign and make it fine, Life is not like a dream Or water in a stream Life is like a ship In the middle of a sea Hope and ambitions are the radar That makes it tension free The death is a treat that every man has to eat.
आब-ऐ-आतीश बन
ता- उम्र
जलाया था
जिसने मुझे,
मुड के देखा मैंने
उस ज़िन्दगी को,
मुस्कुरा रही थी
ज़िन्दगी
मुझे देख कर,
और मैं भी
मुस्कुरा रहा था
छुपा कर
अपने जख्मों के निशान
जो दिए थे उसने,
ना शिकवा है कोई
ना शिकायत ज़िंदगी से
क्योंकि
जख्म तो दिये थे उसने
पर जख्मों की मरहम भी
उसी ने की थी ।
शूरवीर अन्ना
निकल पड़े
ब्रह्मास्त्र लिए
रण के मैदान में,
ये युद्ध है भ्रष्टाचार के विरुद्ध,
सवा करोड़ की सेना देख
दहल उठा है
सत्ता पक्ष
और दहल उठे
सब भ्रष्टाचारी,
अन्ना ने किया है युद्धघोष
अब उठना होगा
हमें चिरनिद्रा से,
और दिखाना होगा
कि हमारी रगों में
अब भी
बहता है खून पानी नहीं!
इंडियन आयल की तरंग पत्रिका में इंग्लिश में लिखा हुआ कुछ इस तरह का पढ़ा था जिस से प्रेरित हो कर ये पंक्तियाँ लिखी हैं...
आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
अस्सी साल का वृद्ध दिख रहा हूँ
और खुद को अस्सी का ही
महसूस भी कर रहा हूँ
लेकिन फिर भी खुशकिस्मत हूँ
आज बहुत कम लोग हैं जो
पचास को पार करते हैं,
मुझे याद है
जब मैं छोटा था
बगीचों में बहुत से पेड़
और घरों में बगीचे हुआ करते थे
झरने और नदियाँ बहा करती थी
रिमझिम बारिश हुआ करती थी,
मुझे याद हैं बचपन में मैं बहुत सारे पानी से नहाया करता था लेकिन आज भीगे हुए तौलिये से बदन पौंछता हूँ अपनी पचासवीं सालगिरह पर मेरी पेंसन का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ पानी खरीदने में खर्च होता है फिर भी जरुरत जितना नहीं मिलता,
मुझे याद है मेरे पिता अस्सी की उम्र में भी जवान दिखा करते थे पर आज तो बीस वर्ष का युवा भी चालीस का दिखता है और औसत उम्र भी तीस की हो चुकी है,
आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर मैं अपने बेटे को हरे भरे घास के मैदान खूबसूरत फूलों
और उन रंग बिरंगी मछलियों की
कहानियाँ सुना रहा हूँ
जो नदियों में तैरा करती थी बता रहा हूँ उसे की आम और अमरुद नाम के फल हुआ करते थे,
मेरे ह्रदय ने
कहा है मुझसे
कि वो
मेरी संवेदना को
मरने नहीं देगा,
साथ ही उसने
हिदायत दी है मुझे
कि आँखों को समझा दो
व्यर्थ आँसू ना बहाए
और दर्द को
सार्वजनिक ना बनाए,
कानों से कह दो
जब कटु वचन का
प्रहार हो
तब बहरे हो जाएँ,
कदमों को
भटकने ना दो
हाथों को
मत फैलाओ कभी
और होठों पर
मुस्कान सजा लो,
मेरे हृदय ने कहा है मुझसे.....