ये जो उलझनें हैं जीवन की
मुझे इनके पार जाना है
कुछ पाने की चाहत है
कही दूर खो जाना है,
थक चुका अब तन
और भटक रहा है मन
वो कौन सा है पथ
जहाँ मुझे जाना है और मंज़िल को पाना है,
जीवन मरण के इस चक्र से
अब मुक्त हो जाना है
फिर नहीं आना है
दूर कहीं खो जाना है,
अब तक चला जिस पथ
उस से पार जाना है
काँटों भरी हो राह
या फिर फूल बिछे हों
अब नहीं घबराना है
दूर कहीं खो जाना है
दूर कहीं खो जाना है//