शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

दूर कहीं खो जाना है





ये जो उलझनें हैं जीवन की 
मुझे इनके पार जाना है
कुछ पाने की चाहत है 
कही दूर खो जाना है,

थक चुका अब तन 
और भटक रहा है मन
वो कौन सा है पथ
जहाँ मुझे जाना है और मंज़िल को पाना है,

जीवन मरण के इस चक्र से 
अब मुक्त हो जाना है
फिर नहीं आना है 
दूर कहीं खो जाना है, 

अब तक चला जिस पथ 
उस से पार जाना है 
काँटों भरी हो राह 
या फिर फूल बिछे हों
अब नहीं घबराना है 
दूर कहीं खो जाना है
दूर कहीं खो जाना है//
NILESH MATHUR

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