सोमवार, 4 जून 2012

आज फिर से




आज फिर से
उठ रही है
सीने में दर्द की इक लहर,


आज फिर से
आँखें नम हो रही है
और दिल उदास है,


आज फिर से
माथे पर सलवटें है
और चेहरे पर विषाद है,


आज फिर से
मेरी भावनाओं से
खेला जा रहा है,


आज फिर से 
मेरे ज़ज्बातों को
कुचला जा रहा है,


आज फिर से
कोई सपना
टूट कर बिखरता जा रहा है,


आज फिर से
मैं खुद से दूर
हुए जा रहा हूँ,


आज फिर से..... 
NILESH MATHUR

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