इंडियन आयल की तरंग पत्रिका में इंग्लिश में लिखा हुआ कुछ इस तरह का पढ़ा था जिस से प्रेरित हो कर ये पंक्तियाँ लिखी हैं...
आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
अस्सी साल का वृद्ध दिख रहा हूँ
और खुद को अस्सी का ही
महसूस भी कर रहा हूँ
लेकिन फिर भी खुशकिस्मत हूँ
आज बहुत कम लोग हैं जो
पचास को पार करते हैं,
मुझे याद है
जब मैं छोटा था
बगीचों में बहुत से पेड़
और घरों में बगीचे हुआ करते थे
झरने और नदियाँ बहा करती थी
रिमझिम बारिश हुआ करती थी,
मुझे याद हैं
बचपन में मैं बहुत सारे पानी से
नहाया करता था
लेकिन आज भीगे हुए तौलिये से
बदन पौंछता हूँ
अपनी पचासवीं सालगिरह पर
मेरी पेंसन का एक बड़ा हिस्सा
सिर्फ पानी खरीदने में खर्च होता है
फिर भी जरुरत जितना नहीं मिलता,
मुझे याद है
मेरे पिता अस्सी की उम्र में भी
जवान दिखा करते थे
पर आज तो बीस वर्ष का युवा भी
चालीस का दिखता है
और औसत उम्र भी तीस की हो चुकी है,
आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
मैं अपने बेटे को
हरे भरे घास के मैदान
खूबसूरत फूलों
और उन रंग बिरंगी मछलियों की
कहानियाँ सुना रहा हूँ
जो नदियों में तैरा करती थी
बता रहा हूँ उसे
की आम और अमरुद नाम के
फल हुआ करते थे,
आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
मैंने और मेरी पीढ़ी ने
पर्यावरण के साथ
जो खिलवाड़ किया था
उसके लिए शर्मिंदा हूँ
जल्द ही शायद इस धरा पर
जीवन संभव नहीं होगा
और इसके जिम्मेदार होंगे
मैं और मेरी पीढ़ी!