आसमान से उतरी
परी थी वो
परी थी वो
न जाने कितने
ख्वाब थे पलकों में,
चकित थी वो
ठहरे हुए पानी में
अपने सौंदर्य को देख ,
छूने की कोशिस में
बिखर गया
उसका प्रतिबिम्ब,
पलकों से
दो बूंद आंसू भी
गिरे झील में
लेकिन
उन आंसुओं का
उन आंसुओं का
कोई वजूद न था,
क्योंकि
ये झील तो
ना जाने कितने
आँसुओं से
मिलकर बनी है,
न जाने कितनी परियाँ
उतरती रही हैं
आसमान से
निरंतर..........
और इसी
झील के किनारे
बहाती रही है आँसू
सदियों से...............