दीपक 'मशाल' जी कि लघु कथाओं से प्रेरित हो कर मैंने भी एक प्रयास किया है..........................
परन्तु अब से कुछ ही देर पहले एक विलायती कार उस पागल को रौंद कर चली गयी, उसकी लाश मुट्ठी बंद किये नारा लगाने वाले अंदाज में सड़क के बीचों बीच पड़ी है, और एक हाथ में उसने कस कर तिरंगे को पकड़ रखा है! पूरे मोहल्ले में आज पहली बार मरघट सा सन्नाटा है और मैं बंद खिड़की कि झीरी से झांक कर उसे देख रहा हूँ!