आज एक पुरानी रचना फिर से.......
एक मुल्क के सीने पर
जब तलवार चल रही थी
तब आसमाँ रो रहा था
और ज़मी चीख रही थी,
चीर कर सीने को
खून की एक लकीर उभर आई थी
उसे ही कुछ लोगों ने
सरहद मान लिया,
उस लकीर के एक तरफ
जिस्म
और दूसरी तरफ
रूह थी,
पर कुछ इंसान
जिन्होंने जिस्म से रूह को
जुदा किया था
वो होठो में सिगार
और विलायती वस्त्र पहन
कहकहे लगा रहे थे,
और कई तो
फिरंगी औरतों संग
तस्वीर खिचवा रहे थे,
भगत सिंह को
डाकू कहने वाले
मौन धारण किये
अनशन पर बैठे थे,
शायद वो इंसान नहीं थे
क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
वो अनजान नहीं थे!