सोमवार, 26 सितंबर 2011

क्षणिकाएँ




(1)
पर्दा करने लगी है 
आजकल शर्म 
बेहयाई 
घूँघट उठा रही है। 


(2)
मैं कोशिश करूंगा 
कि सिर्फ शब्दों के जाल ना बुनू 
शब्दों के परे भी इक जहाँ है 
कभी उधर का भी रूख करूँ। 


(3) 
वो अवरोधों से
बचकर निकल जाते हैं
हमें अवरोधों से बचना नहीं 
उन्हे ध्वस्त करना है।  

(4)
वर्तमान ही भविष्य का 
आधार बनाता है 
अतीत के आँगन मे बिखरे 
सपनों को साकार बनाता है। 

(5)
दर्द को 
सार्वजनिक बना देते हैं आँसू 
और सहानुभूति का पात्र 
बना देते हैं आँसू। 


शनिवार, 24 सितंबर 2011

मैंने भी जीना सीख लिया

आज सिर्फ दो पंक्तियाँ ................

मैंने भी जीना सीख लिया
हालाहल पीना सीख लिया ।


मंगलवार, 20 सितंबर 2011

वक़्त बहुत कम है



ख्वाब देखने मे 
और जीने की जद्दोजहद मे 
कब बीत गयी ज़िंदगी 
पता ही ना चला,


अब वक़्त बहुत कम है 
और काम ज्यादा 
करने को इतना कुछ बाकी है 
कि लेने होंगे कई और जन्म,


उन सब का कर्ज चुकाना है 
जिन्होने दिया स्नेह
और दी खुशियाँ 
जिन्होने दिया जन्म
और सिखाया चलना 
जिन्होने दिखाई राह 
और सिखाया जीना  
जिन्होने दिया दर्द 
और सिखाया रोना,


और हँसना और हँसाना भी तो है 
जो कि अब तक मैं नहीं कर पाया।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

मिट्टी से भी खुश्बू आए

एक अनकही दास्तान
बनकर ना रह जाये 
ज़िंदगी मेरी 
ख्वाहिस है कि 
किस्से कहानियाँ बन जाये 
ज़िंदगी मेरी,


कुछ कर गुज़रने की तमन्ना 
दिल ही दिल मे 
ना रह जाये कहीं 
वक़्त रहते 
कुछ ऐसा कर गुज़रें 
कि दिलों मे बस जाये 
ज़िंदगी मेरी,


किसी दिन 
मिट्टी मे मिल जाना है
तमन्ना है ये
कि मेरी मिट्टी से भी 
खुश्बू आए ।


नोट- अभी तक ऐसा कुछ नहीं कर पाया हूँ।

शनिवार, 10 सितंबर 2011

LIFE

मेरी १० वर्षीया बेटी मेघा की रचना जो कि उसके विध्यालय की इयर बुक में छपी है, इसे पढ़कर मैं आश्चर्यचकित हूँ कि एक 10 साल की  बच्ची भी ऐसा सोच सकती है। मुझे गर्व है अपनी बेटी पर।

MEGHA
What is life?
Nothing but a contract 
Which we sign and make it fine,
Life is not like a dream
Or water in a stream 
Life is like a ship 
In the middle of a sea
Hope and ambitions are the radar
That makes it tension free
The death is a treat that every man has to eat.

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

प्रेमी हूँ मैं



मैंने देखा है
प्रकृति को बहुत नजदीक से
शरीक हुआ हूँ मैं
उसकी खुशियों मे
और महसूस किया है
उसके दर्द को मैंने
हृदय की गहराइयों से,

देखा है मैंने
बारिश मे पेड़ों को झूमते हुए
पौधों को मुस्कुराते हुए
और कोयल को गाते हुए,

देखा है मैंने
कलियों को खिलते हुए
मदहोश हुआ हूँ मैं
फूलों की खुशबू से,

मेरी आँखों ने देखा है
आसमान मे इंद्रधनुष बनते हुए,

पेड़ पौधों के लिए भी
रोया हूँ मैं
महसूस किया है मैंने
धरती का दर्द
और सुना है
पहाड़ों का रूदन भी,

प्रेमी हूँ मैं
इस खूबसूरत प्रकृति का।


NILESH MATHUR

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