बरसता रहा,
लेकिन अब
मरुभूमि पर बरसने की
चाहत है
बरसूँ कुछ इस तरह
कि खिल उठे फूल
रेगिस्तान में
और जलती हुई रेत
शीतल हो जाये,
आवारा बादल हूँ मैं
मेरी फितरत है
भटकने की ,
लेकिन अब
हवाओं से लड़ना है मुझे
हवाओं से लड़ना है मुझे
जो ले जाती है अक्सर
मुझे उड़ा कर
कभी यहाँ तो कभी वहाँ,
आवारा बादल हूँ मैं
बरसना है मुझे
बंजर जमीन पर
जिसे इंतज़ार है मेरा।