और रक्त नहीं बहेगा
अमन औ चैन होगा
अब के बरस,
रक्त रंजित इतिहास देख
पाषाण ह्रदय पिघलेंगे
अब के बरस,
बगावत की आंधियां थमेगी
उजड़े हुए चमन खिलेंगे
अब के बरस,
और आँसू नहीं बहेंगे
चेहरों पर मुस्कान रहेगी
अब के बरस,
बेफिक्र बचपन होगा
उमंग भरी जवानी
अब के बरस,
वृद्धजनों के चेहरे पर भी
गर्वीली मुस्कान रहेगी
अब के बरस,
नहीं बिकेंगे जिस्म यहाँ पर
ना होगा कोई चीरहरण
अब के बरस,
इन्द्र करेंगे स्नेह की वर्षा
शीतल होकर सूर्य रहेंगे
अब के बरस,
खेतों की मुस्कान देख
किसान ह्रदय पुलकित होंगे
अब के बरस,
सीना ताने पर्वत होंगे
निर्भय होकर वृक्ष रहेंगे
अब के बरस,
संस्कारों की जीत होगी
विजयी होगा धर्मं
अब के बरस,
एक नया इतिहास रचेंगे
और रचेंगे नयी कहानी
अब के बरस!!!
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
रविवार, 19 दिसंबर 2010
गुज़ारिश
मेरी मौत पर
आँसू मत बहाना
जश्न मनाना,
जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना,
याद जब आये मेरी
तो ठहाके लगाना
मेरी कमी गर महसूस हो
तो महफ़िल सजाना,
जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना,
मैं मर कर भी जिन्दा रहूँगा
ख्यालों में तुम्हारे
अक्सर आया करूंगा
ख़्वाबों में तुम्हारे,
अब ना सिकवा है किसी से
ना शिकायत
ना ही बाकी
कोई आरजू है,
मंजिल करीब
और करीब आती जा रही है
शुक्रिया उनका
जो मेरे हमसफ़र रहे,
अब तो
इक यही गुज़ारिश है मेरी......
कि मेरी मौत पर
आँसू मत बहाना
जश्न मनाना,
जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना!
आँसू मत बहाना
जश्न मनाना,
जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना,
याद जब आये मेरी
तो ठहाके लगाना
मेरी कमी गर महसूस हो
तो महफ़िल सजाना,
जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना,
तुम चाहे
भुला दो मुझको
मैं मर कर भी
भुला ना पाउँगा तुम्हे,
मैं मर कर भी जिन्दा रहूँगा
ख्यालों में तुम्हारे
अक्सर आया करूंगा
ख़्वाबों में तुम्हारे,
अब ना सिकवा है किसी से
ना शिकायत
ना ही बाकी
कोई आरजू है,
मंजिल करीब
और करीब आती जा रही है
शुक्रिया उनका
जो मेरे हमसफ़र रहे,
अब तो
इक यही गुज़ारिश है मेरी......
कि मेरी मौत पर
आँसू मत बहाना
जश्न मनाना,
जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना!
रविवार, 12 दिसंबर 2010
ये समर्पण है या नियति
तूँ है
सागर की इक लहर
और मैं सागरतट,
तूँ चूमती है
मुझे बार बार
और मैं
तुझे बाहों में ले कर
तेरे अस्तित्व को
मिटा देता हूँ
हर बार,
ये सिलसिला
सदियों से चल रहा है
और सदियों तक
यूँ ही चलता रहेगा
ना तुम थक कर
हार मानोगी
ना ही मैं
कभी इनकार करूंगा
तुम्हे बाहों में लेने से,
लेकिन प्रश्न
तुम्हारे अस्तित्व का है
कब तक तुम
अपने अस्तित्व को
यूँ ही मिटाती रहोगी
और मुझमे समाती रहोगी ?
ये तुम्हारा समर्पण है
या फिर
यही तुम्हारी नियति है ?
सागर की इक लहर
और मैं सागरतट,
तूँ चूमती है
मुझे बार बार
और मैं
तुझे बाहों में ले कर
तेरे अस्तित्व को
मिटा देता हूँ
हर बार,
ये सिलसिला
सदियों से चल रहा है
और सदियों तक
यूँ ही चलता रहेगा
ना तुम थक कर
हार मानोगी
ना ही मैं
कभी इनकार करूंगा
तुम्हे बाहों में लेने से,
लेकिन प्रश्न
तुम्हारे अस्तित्व का है
कब तक तुम
अपने अस्तित्व को
यूँ ही मिटाती रहोगी
और मुझमे समाती रहोगी ?
ये तुम्हारा समर्पण है
या फिर
यही तुम्हारी नियति है ?
शनिवार, 20 नवंबर 2010
गुरुवार, 18 नवंबर 2010
अलविदा
चल दूंगा
अलविदा कहकर तुम्हें ,
पर तुम निराश ना होना
मेरे होने ना होने से
क्या फर्क पड़ता है ,
सब कुछ यूँ ही चलता रहेगा
यूँ ही मेरी तस्वीर
दीवार पर टंगी होगी
फर्क सिर्फ इतना होगा
कि इस पर
इक माला चढी होगी ,
यूँ ही घर कि घंटी बजेगी
कोई आएगा सहानुभूति दिखाएगा
यूँ ही बनिए की दुकान से
बाकी में राशन आएगा
और खाना पकेगा ,
तुम निराश ना होना
सब कुछ यूँ ही चलता रहेगा
सिर्फ मैं ही तो नहीं रहूँगा ,
मेरे होने ना होने से
क्या फर्क पड़ता है!
रविवार, 14 नवंबर 2010
मेरा जीवन
फिर चल देता हूँ
बचपन से लेकर अब तक
बार बार यही सिलसिला,
बचपन में थामने के लिए
हाथ हुआ करते थे
अब गिरने पर
खुद ही सम्हलना पड़ता है,
बचपन में गिरता था
तो रो लेता था
अब तो रोना भी
हंसी का पात्र बना देता है,
मिटटी में मिल जाने का दिन
करीब और करीब आ रहा है
मैं अब तक ठीक से
ये भी ना समझ पाया
कि मैं कौन हूँ
कहाँ से आया हूँ
और क्यों आया हूँ,
उलझा रहा सदा
विचित्र से जालों में
ढूंढ़ता रहा
प्रेम, त्याग, सेवा, रिश्ते
जैसे शब्दों के अर्थ
कम शब्दों में कहूँ तो
अब तक का जीवन
रहा व्यर्थ!
बुधवार, 10 नवंबर 2010
मुक्तिदाता
बुधवार, 3 नवंबर 2010
ये कैसी दीपावली है?
child labour at fireworks factory |
हम दीपावली मनाएंगे
जिनके घरों में
चूल्हे भी नहीं जले
उन्हें शर्मशार करते हुए
घी के दीप जलाएँगे,
धमाकों की आवाज में
छुप जाएंगा रुदन उनका
रोशनी से जगमगाते शहर को,
आज फिर से
हम भूखे नंगों के बीच
नए कपडे पहन कर निकलेंगे
पटाखों के रूप में जलाएँगे,
कोई बिनब्याही बेटी का बाप
दहल जाएगा इनके धमाकों से
और कोई बच्चा
हसरत भरी निगाहों से
निहारेगा फुलझड़ियों को ,
आज फिर से
हम इन बुझे हुए चेहरों के बीच
दीप जलाएँगे
दीप जलाएँगे
और दीपावली मनाएंगे,
क्या ये दीप
The result of making fireworks |
रोशन कर पाएँगे?
क्या ये दीप
उन अन्धकार में डूबे घरों को
ज़रा सी रोशनी दिखाएँगे?
क्या ये दीप
हमारे अंतर के अन्धकार को
मिटा पाएंगे ?
क्या हम सचमुच
कभी रोशनी में नहाएँगे ?
मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010
मौन
मौन की नदी में
नहा कर ही मैंने
नहा कर ही मैंने
आत्मा का संगीत सुना था
जिसे सुनने को
मैं सदियों से तरस रहा था,
और यही वो संगीत था
वो मधुर संगीत
जो ले गया मुझे
उस जहाँ में
उस जहाँ में
जहाँ सिर्फ प्रेम है,
और वो संगीत सुनकर
मैं, मैं ना रहा
मेरा अस्तित्व ही
ना जाने कहाँ खो गया,
सुनना है गर वो संगीत तुम्हे
तो मौन की नदी में
ज़रा उतर के तो देखो!
गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010
आज फिर से
आज फिर से
उठ रही है
सीने में दर्द की इक लहर,
आज फिर से
आँखें नम हो रही है
और दिल उदास है,
आज फिर से
माथे पर सलवटें है
और चेहरे पर विषाद है,
आज फिर से
मेरी भावनाओं से
खेला जा रहा है,
आज फिर से
मेरे ज़ज्बातों को
कुचला जा रहा है,
आज फिर से
कोई सपना
टूट कर बिखरता जा रहा है,
आज फिर से
मैं खुद से दूर
हुए जा रहा हूँ,\
आज फिर से
वो दाड़ी वाला याद आ रहा है
और ऊँगली दिखा रहा है
जिसकी तस्वीर
कल रात को पीते समय
मैंने घुमा कर रख दी थी,
आज फिर से........................
उठ रही है
सीने में दर्द की इक लहर,
आज फिर से
आँखें नम हो रही है
और दिल उदास है,
आज फिर से
माथे पर सलवटें है
और चेहरे पर विषाद है,
आज फिर से
मेरी भावनाओं से
खेला जा रहा है,
आज फिर से
मेरे ज़ज्बातों को
कुचला जा रहा है,
आज फिर से
कोई सपना
टूट कर बिखरता जा रहा है,
आज फिर से
मैं खुद से दूर
हुए जा रहा हूँ,\
आज फिर से
वो दाड़ी वाला याद आ रहा है
और ऊँगली दिखा रहा है
जिसकी तस्वीर
कल रात को पीते समय
मैंने घुमा कर रख दी थी,
आज फिर से........................
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
मैं ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान
मैं ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान
ना ही शामिल हूँ मैं
मैं तो चाहता हूँ
और शायद हर आम आदमी
मैं तो हूँ एक अदद इंसान,
जो नहीं चाहता की नालियों में बहे रक्त
किसी हिन्दू या मुसलमान का,
ना ही शामिल हूँ मैं
शैतानों की जमात में
और ना ही
नफरत का सौदागर हूँ मैं,
मैं तो चाहता हूँ
सिर्फ प्रेम और भाईचारा
मुझे तो मंदिर और मस्जिद में भी
कोई फर्क नज़र नहीं आता,
और शायद हर आम आदमी
मुझ जैसा ही है
जो हिन्दू या मुसलमान होने से पहले
एक अदद इंसान है!
एक अदद इंसान है!
बुधवार, 22 सितंबर 2010
आशा परिवार
आशा परिवार जो विकलांग बच्चों के लिए समर्पित है...........
एक परिवार
जो बांटता है स्नेह
और महसूस करता है दर्द को
और भावनाओं को ,
एक परिवार
जो समर्पित है
प्रेम, त्याग और सेवा को,
एक परिवार
जो सिखाता है सपने देखना
और सपनो को पूरा करना,
एक परिवार
जो जीने की राह दिखाता है
और जीना भी सिखाता है,
एक परिवार
जो सिर्फ आशा ही नहीं
विश्वास है हम सबका ,
एक परिवार
जो परिवार है हमारा
हम सबका परिवार
आशा परिवार !
नीलेश माथुर .
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
दर्द
महसूस किया है
मैंने दर्द को इन दिनों,
बहुत समय बाद
खुलकर रोने का मौका
मिला है इन दिनों,
कोई सह रहा है दुःख
किसी के लिए
कोई ढाए जा रहा है सितम
किसी पर इन दिनों,
इस जिस्म से
रूह को जुदा कर सकूँ
इतना साहस भी
नहीं बचा है मुझमे इन दिनों,
जिन्हें अपना समझता रहा
उम्र भर
वही कत्ल करने पर आमाद हैं मेरा
इन दिनों,
किससे कहूँ
हाले-दिल अपना
मेरा खुदा भी मुझसे
नाराज है शायद इन दिनों !
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
बहुत क़र्ज़ है हिंद पर हिंदी का
आओ
दम तोडती हिंदी को
रक्तदान करें,
कुछ साँसे
उधार दे कर
मरने से बचा लें उसे,
बहुत क़र्ज़ है
हिंद पर हिंदी का!
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
महंगी मुस्कान
रविवार, 29 अगस्त 2010
मौन.........
सोमवार, 16 अगस्त 2010
रंग बिरंगे फूलों से लदी सड़क
श्री श्री के आशीर्वाद से जीवन में कुछ लोग मिले हैं जिनके सानिध्य और मार्गदर्शन से मेरे विचार और जीवन शैली में कुछ परिवर्तन सा आने लगा है, ज्योति का जिक्र तो मैं अपनी पिछली पोस्ट में कर चुका हूँ, आज मैं बात कर रहा हूँ आर्ट ऑफ़ लिविंग के शिक्षक परम आदरणीय श्री सुरेश स्वामी जी और श्री राणा दास की, ये दोनो ऐसे व्यक्ति हैं जिनके निस्वार्थ सेवा भाव से और उनके व्यक्तित्व से मैं बहुत प्रभावित हूँ, और मैं चाहता हूँ कि उनका स्नेह और मार्गदर्शन इसी तरह मुझे मिलता रहे, ये काव्य पंक्तियाँ उन्ही के लिए लिखी है और उन्हें ही समर्पित हैं.......
वो मिले थे मुझे
जीवन पथ पर
चलते हुए,
और थाम कर मेरा हाथ
उन्होंने मुझे
जीवन के उस मोड़ पर
पंहुचा दिया....
जहाँ से पीछे
कुछ नहीं दिखता
लेकिन आगे.....
रंग बिरंगे फूलों से लदी
सड़क दिखती है,
और मैं
उनके प्रेम और स्नेह से
अभिभूत हो
चल पड़ा हूँ
उसी फूलों से लदी सड़क पर,
और वो
चेहरे पर मुस्कान लिए
मुझे राह दिखाते
चल रहे हैं मेरे साथ !
श्री सुरेश स्वामी, मैं और श्री राणा दास |
जीवन पथ पर
चलते हुए,
और थाम कर मेरा हाथ
उन्होंने मुझे
जीवन के उस मोड़ पर
पंहुचा दिया....
जहाँ से पीछे
कुछ नहीं दिखता
लेकिन आगे.....
रंग बिरंगे फूलों से लदी
सड़क दिखती है,
और मैं
उनके प्रेम और स्नेह से
अभिभूत हो
चल पड़ा हूँ
उसी फूलों से लदी सड़क पर,
और वो
चेहरे पर मुस्कान लिए
मुझे राह दिखाते
चल रहे हैं मेरे साथ !
रविवार, 15 अगस्त 2010
महात्मा गाँधी को स्वाधीनता दिवस की बधाई
सादर प्रणाम, आशा ही नहीं हमें पूर्ण विश्वास है कि आप कुशलता से होंगे। हम सब भी यहाँ मजे में हैं। आज हम ६४ वां स्वतन्त्रता दिवस मानाने जा रहे हैं, आपको बहुत बहुत बधाई हो, इस पावन पर्व पर देश और समाज की स्थिति से आपको अवगत करवाने के लिए मैंने ये ख़त लिखना अपना कर्त्तव्य समझा। कुछ बातों के लिए हम आपसे माफ़ी चाहते हैं जैसे कि आपके बताए सत्य और अहिंसा के सिद्धांत में हमने कुछ परिवर्तन कर दिए हैं, इसे हमने बदल कर असत्य और हिंसा कर दिया है, और इसमें हमारे गांधीवादी राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा योगदान रहा है, वो हमें समय समय पर दिशाबोध कराते रहते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। इन्हीं के मार्गदर्शन में हम असत्य और हिंसा के मार्ग पर निरंतर अग्रसर हैं, बाकी सब ठीक है।
आपने हमें जो आज़ादी दिलवाई उसका हम भरपूर फायदा उठ रहे हैं। भ्रस्टाचार अपने चरम पर है, बाकी सब ठीक है।
हर सरकारी विभाग में आपकी तस्वीर दीवारों पर टँगवा दी गयी है और सभी नोटों पर भी आपकी तस्वीर छपवा दी गयी है। इन्हीं नोटों का लेना-देना हम घूस के रूप में धड़ल्ले से कर रहे हैं, बाकी सब ठीक है। स्वराज्य मिलने के बाद भी भूखे नंगे आपको हर तरफ नज़र आएँगे, उनके लिए हम और हमारी सरकार कुछ भी नहीं कर रहे हैं, हमारी सरकार गरीबी मिटाने की जगह गरीबों को ही मिटाने की योजना बना रही है, बाकी सब ठीक है।
बापू हमें अफ़सोस है की खादी को हम आज तक नहीं अपना सके हैं, हम आज भी विदेशी वस्त्रों और विदेशी वस्तुओं को ही प्राथमिकता देते हैं, बाकी सब ठीक है।
अस्पृश्यता आज भी उसी तरह कायम है। जिन दलितों का आप उत्थान करना चाहते थे, उनकी आज भी कमोबेश वही स्थिति है, बाकी सब ठीक है।
बापू आजकल हम सत्याग्रह नहीं करते, हमने विरोध जताने के नए तरीके इजाद किये हैं। आज कल हम विरोध स्वरुप बंद का आयोजन करते हैं और उग्र प्रदर्शन करते हैं, जिसमें कि तोड़फोड़ और आगज़नी की जाती है, बाकी सब ठीक है।
जिस पाकिस्तान की भलाई के लिए आपने अनशन किये थे, वही पाकिस्तान आज हमें आँख दिखाता है, आधा काश्मीर तो उसने पहले ही हड़प लिया था, अब उसे पूरा काश्मीर चाहिए। आतंकियों की वो भरपूर मदद कर रहा है। हमारे देश में वो आतंक का नंगा नाच कर रहा है। आये दिन बम के धमाके हो रहे हैं और हजारों बेगुनाह फिजूल में अपनी जान गँवा रहे हैं, बाकी सब ठीक है।
बांग्लादेश के साथ भी हम पूरी उदारता से पेश आ रहे हैं, वहां के नागरिकों को हमने अपने देश में आने और रहने की पूरी आज़ादी दे रखी है, करोड़ों की संख्या में वे लोग यहाँ आकर मजे में रह रहे हैं, और हमारे ही लोग उनकी वजह से भूखे मर रहे हैं, बाकी सब ठीक है।
बापू हम साम्प्रदायिक भाईचारा आज तक भी कायम नहीं कर पाए हैं। धर्म के नाम पर हम आये दिन खून बहाते हैं। आज हमारे देश में धर्म के नाम पर वोटों की राजनीति खूब चल रही है। साम्प्रदायिक हिंसा आज तक जारी है। बाकी सब ठीक है।
बापू आज आप साक्षात यहाँ होते तो आपको खून के आंसू रोना पड़ता, बापू आपने नाहक ही इतना कष्ट सहा और हमें आज़ादी दिलवाई, हो सके तो हमें माफ़ करना।
आपका अपना-
एक गैर जिम्मेदार भारतीय नागरिक
शुक्रवार, 13 अगस्त 2010
ज्योति
जीवन में कुछ लोग मिलते है जिनसे मिलकर अपनेपन का अहसास होता है, और जीवन एक खूबसूरत मोड़ ले लेता है, श्री श्री रविशंकर जी के आशीर्वाद से मुझे ज्योति के रूप में एक छोटी बहन मिली है, ज्योति गुरु जी की विशेष कृपापात्र है और सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित है, और ज्योति को बहन के रूप में पा कर मैं इतना खुश हूँ कि खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझने लगा हूँ, मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वो हमेशा खुश रहे, और अब वो खुश रहे इसकी ज़िम्मेदारी मेरी भी है!
ज्योति के लिए कुछ पंक्तियाँ ....................
ज्योति हो तुम
और ज्योति ही
अन्धकार को मिटाती है,
कभी कभी
विपरीत हवाओं से
लड़ना भी होगा तुम्हे,
लेकिन तुम्हे अटल रहना है
और वो ज्योति बनना है
जिसे हवाएं तो क्या
तूफ़ान भी बुझा ना सके,
तूफ़ान भी सहम कर
थम जाएगा तुम्हारे तेज से
हवाओ कि तो
बिसात ही क्या,
तुम जगमगाती रहना
सदा यूँ ही
अँधेरे को मिटाती रहना
सदा यूँ ही
और मुस्कराती रहना
सदा यूँ ही!
ज्योति के लिए कुछ पंक्तियाँ ....................
Jyoti |
और ज्योति ही
अन्धकार को मिटाती है,
कभी कभी
विपरीत हवाओं से
लड़ना भी होगा तुम्हे,
लेकिन तुम्हे अटल रहना है
और वो ज्योति बनना है
जिसे हवाएं तो क्या
तूफ़ान भी बुझा ना सके,
तूफ़ान भी सहम कर
थम जाएगा तुम्हारे तेज से
हवाओ कि तो
बिसात ही क्या,
तुम जगमगाती रहना
सदा यूँ ही
अँधेरे को मिटाती रहना
सदा यूँ ही
और मुस्कराती रहना
सदा यूँ ही!
शनिवार, 7 अगस्त 2010
श्री श्री के चरणों में समर्पित
रविवार, 1 अगस्त 2010
जिन्ना को उनका पकिस्तान मिला नेहरु को हिन्दुस्तान
क्या नहीं सोचा था
नेहरु और जिन्ना ने
कि ये कीमत चुकानी होगी
आज़ादी और विभाजन की,
नालियों में बह रहा
बेकसूरों का रक्त था
और वो बेकसूर नहीं जानते थे
कि सरहद किसे कहते हैं
और आज़ादी क्या है,
वो नहीं जानते थे
नेहरु और जिन्ना को,
वो तो मार दिए गए
हिन्दू और मुसलमान होने के
अपराध में,
मरने से पहले देखे थे उन्होंने
अपनी औरतों के स्तन कटते हुए
अपने जिंदा बच्चों को
गोस्त कि तरह आग में पकते हुए,
दुधमुहे बच्चे
अपनी मरी हुई माँ की
कटी हुई छातियों से बहते रक्त को
सहमे हुए देख रहे थे
और उसकी बाहों को
इस उम्मीद में खींच रहे थे
कि बस अब वो उसे गोद में उठा लेगी,
माएँ अपनी जवान बेटियों के
गले घोट रही थी
उन्हें बलात्कार से बचाने के लिए,
बेरहमी कि हदों को तोड़कर
इंसानियत को रौंदा गया,
पर एक सवाल आज भी
अपनी जगह कायम है
कि इस भीषण त्रासदी का
ज़िम्मेदार कौन???
जिन्ना को
उनका पाकिस्तान मिला
नेहरु को
हिन्दुस्तान,
परन्तु बाकी बचे
चालीस करोड़ लोगों को
क्या मिला???
टुकड़ों में बंटा
लहुलुहान हिन्दुस्तान!!!
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
NILESH MATHUR