मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

मौन

मौन की नदी में 
नहा कर ही मैंने 
आत्मा का संगीत सुना था
जिसे सुनने को 
मैं सदियों से तरस रहा था,
और यही वो संगीत था
वो मधुर संगीत 
जो ले गया मुझे 
उस जहाँ में 
जहाँ सिर्फ प्रेम है,
और वो संगीत सुनकर  
मैं, मैं ना रहा
मेरा अस्तित्व ही 
ना जाने कहाँ खो गया,
सुनना है गर वो संगीत तुम्हे
तो मौन की नदी में
ज़रा उतर के तो देखो!





गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

आज फिर से

आज फिर से
उठ रही है
सीने में दर्द की इक लहर,


आज फिर से
आँखें नम हो रही है
और दिल उदास है,


आज फिर से
माथे पर सलवटें है
और चेहरे पर विषाद है,


आज फिर से
मेरी भावनाओं से
खेला जा रहा है,


आज फिर से 
मेरे ज़ज्बातों को
कुचला जा रहा है,


आज फिर से
कोई सपना
टूट कर बिखरता जा रहा है,


आज फिर से
मैं खुद से दूर
हुए जा रहा हूँ,\


आज फिर से 
वो दाड़ी वाला याद आ रहा है
और ऊँगली दिखा रहा है 
जिसकी तस्वीर 
कल रात को पीते समय
मैंने घुमा कर रख दी थी,  
आज फिर से........................
NILESH MATHUR

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