(1)
पर्दा करने लगी है
आजकल शर्म
बेहयाई
घूँघट उठा रही है।
(2)
मैं कोशिश करूंगा
कि सिर्फ शब्दों के जाल ना बुनू
शब्दों के परे भी इक जहाँ है
कभी उधर का भी रूख करूँ।
(3)
वो अवरोधों से
बचकर निकल जाते हैं
हमें अवरोधों से बचना नहीं
उन्हे ध्वस्त करना है।
आधार बनाता है
अतीत के आँगन मे बिखरे
सपनों को साकार बनाता है।
(5)
दर्द को
सार्वजनिक बना देते हैं आँसू
और सहानुभूति का पात्र
बना देते हैं आँसू।
दर्द को
सार्वजनिक बना देते हैं आँसू
और सहानुभूति का पात्र
बना देते हैं आँसू।
मैं कोशिश करूंगा
जवाब देंहटाएंकि सिर्फ शब्दों के जाल ना बुनू
शब्दों के परे भी इक जहाँ है
कभी उधर का भी रूख करूँ।
बहुत खूब कहा है आपने ।
सभी क्षणिकाये खूबसूरत्।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब ........हर शब्द शब्द ....अपने आप में पूर्ण है .....
जवाब देंहटाएं--
दर्द को
जवाब देंहटाएंसार्वजनिक बना देते हैं आँसू
और सहानुभूति का पात्र
बना देते हैं आँसू।
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति बधाई
भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंsach ko darshati utkrisht kshanikayen.
जवाब देंहटाएंसारी क्षणिकाएँ बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाये...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
जवाब देंहटाएंCHAARON KSHANIKAYEN BEJOD HAIN...BADHAI...
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंसुंदर क्षणिकाएं हैं नीलेश जी !
बहुत समय हो गया संवाद नहीं हुआ अपने बीच … :)
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और
शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
मैं कोशिश करूंगा
जवाब देंहटाएंकि सिर्फ शब्दों के जाल ना बुनू
शब्दों के परे भी इक जहाँ है
कभी उधर का भी रूख करूँ....बहुत सुन्दर कहा...
हर क्षणिका बहुत अच्छी लगी ....कोशिश शब्दों के पार के जहां को जानने की ...
जवाब देंहटाएंदर्द को
जवाब देंहटाएंसार्वजनिक बना देते हैं आँसू
और सहानुभूति का पात्र
बना देते हैं आँसू
sari bahut acchi hain....par yeh mujhe kuch khas lagi
एक से बढ़ कर एक.......!!
जवाब देंहटाएंसबसे बेहतरीन पहली क्षणिका!
जवाब देंहटाएंपर्दा करने लगी है
जवाब देंहटाएंआजकल शर्म
बेहयाई
घूँघट उठा रही है। .....waah! kya baat hai......
कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
जवाब देंहटाएंbehtreen kshanikaayen.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन क्षणिकाएँ हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर क्षणिकाएं...
जवाब देंहटाएंसादर..