गुरुवार, 15 मई 2025

गमले का पौधा

 

गमले में लगा 

पौधा बन गया हूं

ना तो मेरी जड़ें 

ज़मीन को छू पाती हैं 

ना ही मैं आसमान को चूम पाता हूँ ,

चाहता हूं 

कि कोई मुझे

गमले से निकाल कर 

फिर से ज़मीन में लगा दे

ताकी मैं फिर से 

अपनी मिट्टी में मिल जाऊ

और आसमान की उचाईयों को छू पाऊ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. कोई लगा दे से अच्छा है ख़ुद ही बीज बनकर हवाओं में उड़ जाऊँ और जहाँ हरियाली और जल स्रोत दिखे वहाँ धरती में गहरे उतर जाऊँ

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  2. नन्हे से पौधे जैसी प्यारी कविता और खयाल ..पनपता रहे...सुप्रभात!

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  3. आज के वक्त में हम सब कहीं न कहीं इसी हालत में हैं। न पूरी आज़ादी है, न ज़मीन से जुड़ाव। हर पंक्ति जैसे अंदर तक झकझोर देती है, खासकर वो इच्छा कि “कोई मुझे फिर से ज़मीन में लगा दे।” ये लाइन उम्मीद और दर्द दोनों को साथ लाती है।

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  4. बहुत बढ़िया , मिट्टी में उगने की चाह

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NILESH MATHUR

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