आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
गमले में लगा
पौधा बन गया हूं
ना तो मेरी जड़ें
ज़मीन को छू पाती हैं
ना ही मैं आसमान को चूम पाता हूँ ,
चाहता हूं
कि कोई मुझे
गमले से निकाल कर
फिर से ज़मीन में लगा दे
ताकी मैं फिर से
अपनी मिट्टी में मिल जाऊ
और आसमान की उचाईयों को छू पाऊ।
कोई लगा दे से अच्छा है ख़ुद ही बीज बनकर हवाओं में उड़ जाऊँ और जहाँ हरियाली और जल स्रोत दिखे वहाँ धरती में गहरे उतर जाऊँ
Waah
ऐसा ही हो !
धन्यवाद
नन्हे से पौधे जैसी प्यारी कविता और खयाल ..पनपता रहे...सुप्रभात!
बहुत सुंदर
आज के वक्त में हम सब कहीं न कहीं इसी हालत में हैं। न पूरी आज़ादी है, न ज़मीन से जुड़ाव। हर पंक्ति जैसे अंदर तक झकझोर देती है, खासकर वो इच्छा कि “कोई मुझे फिर से ज़मीन में लगा दे।” ये लाइन उम्मीद और दर्द दोनों को साथ लाती है।
बेहतरीन
सुंदर
बहुत बढ़िया , मिट्टी में उगने की चाह
कोई लगा दे से अच्छा है ख़ुद ही बीज बनकर हवाओं में उड़ जाऊँ और जहाँ हरियाली और जल स्रोत दिखे वहाँ धरती में गहरे उतर जाऊँ
जवाब देंहटाएंWaah
हटाएंऐसा ही हो !
हटाएंधन्यवाद
हटाएंनन्हे से पौधे जैसी प्यारी कविता और खयाल ..पनपता रहे...सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआज के वक्त में हम सब कहीं न कहीं इसी हालत में हैं। न पूरी आज़ादी है, न ज़मीन से जुड़ाव। हर पंक्ति जैसे अंदर तक झकझोर देती है, खासकर वो इच्छा कि “कोई मुझे फिर से ज़मीन में लगा दे।” ये लाइन उम्मीद और दर्द दोनों को साथ लाती है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया , मिट्टी में उगने की चाह
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