सपने वो भी देखते हैं
जिनकी हथेलियाँ खुरदरी हैं
और पीठ पर जिनके छाले हैं,
उनके माथे से
बहता पसीना
पलकों से हो कर
ज़मीन पर टपकता है,
वो पसीना धो देता है
पलकों में छुपे सपनों को
और उनके कुछ सपने
छीन लेते हैं
बड़े पेट वाले जादूगर
जिनकी तिजोरियों में
ढेर लगा है सपनों का
न जाने कितने सपने
दम तोड़ चुके हैं
इन तिजोरियों में,
लेकिन देखना
किसी दिन ये खुरदरे हाथ
इन तिजोरियों को तोड़ कर
अपने सपनों को छीन लेंगे,
और इन बड़े पेट वाले
जादूगरों के पेट
पीठ से चिपक जाएंगे
उस दिन।
ये कविता सिर्फ़ शब्द नहीं, एक चेतावनी है कि किसी दिन ये खुरदरे हाथ वाकई सब कुछ बदल देंगे। सच कहूँ तो, ये कविता भीतर तक चुभती है। इसमें जो दर्द है, वो किसी किताब का नहीं, मिट्टी में काम करने वाले हाथों का है। लेकिन सबसे ख़ास बात है उसका अंत जहाँ उम्मीद अब भी ज़िंदा है।
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