गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

आज फिर से


आज फिर से
भूख पसरी होगी
कुछ आशियानों में
और कहीं पकवान बनेंगे,
आज फिर से
कोई मरेगा भूख से
और किसी को
बदहजमी की शिकायत होगी,
आज फिर से
धूप में झुलसेगी पीठ किसी की
और कोई पसरा होगा
ठंडी छाँव में,
आज फिर से
किसी की आँखे बरसेंगी
और कोई बेशर्मी से
खिलखिलाएगा कहीं,
आज फिर से
किसी घर मे अंधेरा होगा
और किसी का घर
रोशनी से जगमगाएगा,
आज फिर से
कोई पसीना बहाएगा
और कहीं
छलकेंगे जाम,
आज फिर से
छलनी होंगे उसके अरमान
और कहीं
जश्न मानेगा,
आखिर कब तक
ये सिलसिला चलेगा।


10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर, अनुपम अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अर्से बाद आज आपको पुनः पढ़ा । वही पहले जैसी गहराई लेखन में। ज़िन्दगी यही है ..... कहीं धूप तो कहीं छांव है ।।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. यही विसंगतियां जीवन का सत्य है।
    सुंदर सृजन।

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  6. एक ज्वलंत प्रश्न !
    लेकिन आम जनता की जीवनशैली में और ख़ास जन-सेवकों की जीवन शैली में इतना अंतर होना तो बनता है.

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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