आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
आवारा बादल हूँ कभी यहॉं तो कभी वहाँ भटकना तो फितरत है मेरी, बस इक छोटी सी चाहत है बंज़र भूमि पर बरसने की।
हम भी कई बार बिना वजह इधर-उधर भटकता हूँ और फिर सोचते है कि कहीं न कहीं तो हमारे हिस्से की बारिश भी जरूरी है। आपने “बंजर ज़मीन पर बरसने” वाली बात कहकर कमाल कर दिया, क्योंकि हम सब अंदर ही अंदर यही चाहते हैं कि हमारी मौजूदगी किसी के काम आए।
हम भी कई बार बिना वजह इधर-उधर भटकता हूँ और फिर सोचते है कि कहीं न कहीं तो हमारे हिस्से की बारिश भी जरूरी है। आपने “बंजर ज़मीन पर बरसने” वाली बात कहकर कमाल कर दिया, क्योंकि हम सब अंदर ही अंदर यही चाहते हैं कि हमारी मौजूदगी किसी के काम आए।
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