रविवार, 19 दिसंबर 2021

आवारा बादल


आवारा बादल हूँ
कभी यहॉं तो कभी वहाँ
भटकना तो
फितरत है मेरी,
बस इक छोटी सी चाहत है
बंज़र भूमि पर बरसने की।

1 टिप्पणी:

  1. हम भी कई बार बिना वजह इधर-उधर भटकता हूँ और फिर सोचते है कि कहीं न कहीं तो हमारे हिस्से की बारिश भी जरूरी है। आपने “बंजर ज़मीन पर बरसने” वाली बात कहकर कमाल कर दिया, क्योंकि हम सब अंदर ही अंदर यही चाहते हैं कि हमारी मौजूदगी किसी के काम आए।

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NILESH MATHUR

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