आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
बुधवार, 10 नवंबर 2010
मुक्तिदाता
मैं पथिक एकांत पथ पर चला जा रहा था हर तरफ कोहरे का साम्राज्य, एक दिन पत्तों पर अपने ओसकण छोड़ कर कोहरा हटा और मुझे दिखी उस पथ की सुन्दरता जिस पर मैं अनमना सा चलता रहा था दूर तक, और उसी पथ पर मेरे स्वागत में मुस्कराते हुए खड़े थे मेरे मुक्तिदाता!
nilesh ji , bahut hi yatharth prastuti. और मुझे दिखी उस पथ की सुन्दरता जिस पर मैं अनमना सा चलता रहा था दूर तक, और उसी पथ पर मेरे स्वागत में मुस्कराते हुए खड़े थे मेरे मुक्तिदाता bahut hi prabhav purn rachna--- poonam
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर.........
जवाब देंहटाएंसच कहा ......... जब कोहरा हटता है तो मुक्तिदाता नजर आतें हैं . सुन्दर ........... अति सुन्दर .
जवाब देंहटाएंकोहरा हटा
जवाब देंहटाएंऔर मुझे दिखी उस पथ की सुन्दरता
जिस पर मैं
अनमना सा चलता रहा था...
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अति सुन्दर .
.
bahut badhiya...jab muktidaata aa jaate hain kohara chhat jaataa hai.
जवाब देंहटाएं...अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया .........माफी चाहता हूँ..
बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंnilesh ji ,
जवाब देंहटाएंbahut hi yatharth prastuti.
और मुझे दिखी उस पथ की सुन्दरता
जिस पर मैं
अनमना सा चलता रहा था
दूर तक,
और उसी पथ पर
मेरे स्वागत में
मुस्कराते हुए खड़े थे
मेरे मुक्तिदाता
bahut hi prabhav purn rachna---
poonam