शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

दूर कहीं खो जाना है





ये जो उलझनें हैं जीवन की 
मुझे इनके पार जाना है
कुछ पाने की चाहत है 
कही दूर खो जाना है,

थक चुका अब तन 
और भटक रहा है मन
वो कौन सा है पथ
जहाँ मुझे जाना है और मंज़िल को पाना है,

जीवन मरण के इस चक्र से 
अब मुक्त हो जाना है
फिर नहीं आना है 
दूर कहीं खो जाना है, 

अब तक चला जिस पथ 
उस से पार जाना है 
काँटों भरी हो राह 
या फिर फूल बिछे हों
अब नहीं घबराना है 
दूर कहीं खो जाना है
दूर कहीं खो जाना है//

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 19 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या बात..👍👌
    जीवन पथ पर चलते ही जाना हैं
    यही हैं रीत।

    जवाब देंहटाएं
  3. दूर जाने की की चाहत ही उलझन बनी हुई है।

    या तो चल दो
    या अपने अंदर ही गहरे में उतर जाओ।

    सुंदर अल्फ़ाज़

    जवाब देंहटाएं
  4. सिद्धत्व की चिर अभिलाषा लिये शुभ्र भावना।
    पावन।

    जवाब देंहटाएं
  5. दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. Excellent Blog! I would like to thank for the efforts you have made in writing this post. I am hoping the same best work from you in the future as well.
    I wanted to thank you for this websites! Thanks for sharing. Great websites!
    https://www.eljnoub.com/
    http://www.elso9.com/

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

यह ब्लॉग खोजें

www.hamarivani.com रफ़्तार