रविवार, 23 दिसंबर 2012

ज़ख्म


क्षणिकाएँ .......
(1)
ज़िन्दगी ने दिए थे जो ज़ख्म 
उन्हें सहलाता रहा 
पीता रहा दर्द और जीता रहा 
शुक्रिया उनका 
जिन्होंने मरहम की 
और उनका भी शुक्रिया 
जिन्होंने मेरे ज़ख्मों को कुरेदा।

(2)
ऐ मेरे खुदा 
हर ख़ता के लिए 
माफ़ करना मुझे 
मैं होशो हवाश में न था 
जब मैंने ख़ता की।

(3)
हुश्न वाली ने 
खंज़र छुपा रखा था बगल में 
मुझे ज़िन्दगी से 
मौत ज्यादा खूबसूरत लगी।

(4)
रात इतनी लम्बी हो गयी 
कि सुबह के इंतज़ार में 
ज़िन्दगी बीत गयी।





8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 28/12/2012 को

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
    इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।

    सूचनार्थ,

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ खूबसूरत क्षणिकायें...जीवन के यथार्थ को बयान करती हुईं..

    जवाब देंहटाएं
  3. सच कहु तो आपकी ये चारों छोटी-छोटी रचनाएँ दिल पर सीधी चोट करती हैं। अच्छा लगता है कि तुम दर्द को छिपाते नहीं, बल्कि उसे अपना हिस्सा मानकर लिखते हो। यह स्टाइल बहुत ईमानदार लगता है। आपकी हर लाइन जैसे किसी पुराने अनुभव को फिर से जगा देती है।

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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