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Photo by Debjani Tarafder |
चाँद के साथ
वो भी जाग रही थी
रात भर
और भीग रहे थे
चांदनी में
उसके ज़ज्बात,
चाँद पर लगे दाग
याद दिलाते थे उसे
उसके जख्म
जो ज़िन्दगी ने
दिए थे,
कभी जब चाँद
बादलों में छुप जाता
तो व्याकुल
हो उठती थी वो,
और उसकी
नर्म नाज़ुक हथेलियाँ
बादलों हो हटाने की
कोशिस में
व्यर्थ ही आसमान की ओर
उठ जाती थी,
लेकिन
निर्मम बादलों के झुण्ड
नहीं समझ पाते थे
उसकी भावनाओं को
और छुपा कर
चाँद को
हँसते थे उस पर,
लेकिन चाँद
उसकी भावनाओं को
समझ कर
बादलों से लडता था
उसकी खातिर,
और दीदार करता था
अपने ही जैसे
धरती के इस चाँद का!
waah... bahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंBeautiful imagination !
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंभीग रहे थे चांदनी में उसके जज़्बात ...बहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंतुझे चांद के बहाने देखूं...
जवाब देंहटाएंनर्म नाज़ुक हथेलियाँ
जवाब देंहटाएंबादलों हो हटाने की
कोशिस में
व्यर्थ ही आसमान की ओर
उठ जाती थी,
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई
वाह नीलेश जी,
जवाब देंहटाएंलुका छिपी को नया नजरिया दिया।
कोमल भावनाओं को खूबसूरत शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करती एक मासूम कविता !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना..बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्बों से पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
चाँद की मजबूरिय तो चाँद ने पार कर लीं ... पर उनकी मजबूरियों को समझना आसान नहीं .... दो चाहते हुवे भी बाहर नहीं आ सकतीं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति...लाजवाब।
जवाब देंहटाएं*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
चाँद उसकी भावनाओं को समझकर लड़ पड़ता था बादलों से ...
जवाब देंहटाएंरात भर चाँद से बातें की उसने , चाँद ने भी तो अपना फ़र्ज़ निभाना था !
बहुत सुन्दर !
बहुत भावपूर्ण रचना..बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna...
जवाब देंहटाएंsundar rachna...
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