आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
गमले में लगा
पौधा बन गया हूं
ना तो मेरी जड़ें
ज़मीन को छू पाती हैं
ना ही मैं आसमान को चूम पाता हूँ ,
चाहता हूं
कि कोई मुझे
गमले से निकाल कर
फिर से ज़मीन में लगा दे
ताकी मैं फिर से
अपनी मिट्टी में मिल जाऊ
और आसमान की उचाईयों को छू पाऊ।