बुधवार, 28 अप्रैल 2010

ब्लॉग और पुस्तकें !

मेरी सेल्फ में बंद पुस्तकों ने
आन्दोलन करने की ठानी है
मैं आजकल
ब्लॉग जगत में विचरता हूँ
उन्हें परेशानी है,

मैं भी असमंजस में हूँ
कि इन पुस्तकों को पढू
या ब्लॉग जगत में ही
विचरता फिरू,

इस छोटे से जीवन में
मैं क्या क्या करू !

पुस्तकें अक्सर
नाराज होकर 
शिकायत भी करती है मुझसे
तब मैं उन्हें मनाता हूँ
और कहता हूँ .........
प्रिये, नाराज ना होना मुझसे
तुम तो मेरी जान हो,
ये कहकर एक पुस्तक उठाता हूँ
और बिस्तर पर औंधे मुह लेटकर
पढ़ते पढ़ते सो जाता हूँ !

14 टिप्‍पणियां:

  1. समय का प्रबंधन करें और उसे बांटॆ..सबके साथ न्याय होना चाहिये..किताबों के साथ भी.

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  2. बात तो सही है। मै पहले अपना लैपटॉप भी ले जाता था लेकिन अब छोड़ दिया। केवल पुस्तकें ले जाता हूं।

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  3. ब्लॉग जगत में विचरता हूँ
    उन्हें परेशानी है,

    ......बहुत खूब, लाजबाब !

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  4. pustako ka dard beshak samjha ja sakta hai,ummed hai ab unki shikayat dur ho jani chahiye.
    acchi rachna!

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  5. पुस्तको भी समय चाहिये, हर समय ब्लॉग ठीक नहीं

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  6. जी शिकायत तो वाजिब है उनकी , इस मुई ब्लोग्गिंग ने सबका यही हाल किया हुआ है , अच्छा किया आपने ये लिखकर कल मैं भी अपनी पुस्तकें देखता हूं क्या पता वहां भी ऐसी कोई कंप्लेंट पेंडिंग पडी हो ?

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  7. हमारी हैल्फ में धूल फाँक रही पुस्तकों को भी जरूर हमसे शिकायत रहती होंगी....सच में इस ब्लागिंग नें अच्छे अच्छे पढाकुओं को नकारा कर डाला...कुछ सोचना पडेगा...

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  8. ब्लॉग के साथ साथ पुस्तक भी पढ़ें क्योकि ....

    पुस्तक कभी शिकायत नहीं करती

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  9. वाह !!! नीलेश जी , लिखा तो ठीक है लेकिन पुस्तको की उपेक्षा करना अठीक है ।
    मजेदार और वास्तविक ।

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  10. aisa laga aap beetee pad rahee hoo . Yanha bhee ye hee haal hai.........

    THE READER.... BERNHARD SCHLINK kee book shuru karke samay hogaya .
    kabhee samay tha book khatam karke hee chen aata tha .

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  11. प्रिये, नाराज ना होना मुझसे
    तुम तो मेरी जान हो,
    ये कहकर एक पुस्तक उठाता हूँ

    मैंने तो सोचा था आगे होगा .....
    एक पुस्तक उठता हूँ
    और फिर बंद कर
    कंप्यूटर पे बैठ जाता हूँ .....

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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