गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

क्षणिकाएँ



1.
गंगा में डुबकी लगाई
पापों से मुक्ति पायी ,
फिर शुरू होंगे
नए सिरे से अनवरत पाप!

2.
हर कि पौडी
हर लेती हर पाप
और हम
फिर से तरोताजा
और पाप करने को !

3.
खुदा की इबादत भी
कर के देख चुका मैं
पर मेरी दुश्वारियों की ज़िद
शुभानअल्लाह !

4.
जब हताश हो उठता है मन
तो बेजान पत्थरों में
नज़र आती है उम्मीद कि किरण
और फिर पूजने लगते हैं
पत्थरों को देवता बनाकर!


NILESH MATHUR

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