आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
Ah!
सही है..और पीटो!!बढ़िया रचना.
प्रशंसनीय ।
or is mahngai ke jamane me kab bhi kya sakte he ham,bahut khub shekhar kumawat http://kavyawani.blogspot.com/
बढ़िया
मैं रोज सुबह उसे पहनता हूँरात को पीट पीट कर धोता हूँ और निचोड़कर सुखा देता हूँशायद उसे हंसने की सजा देता हूँ !वाह!! बहुत ही सुन्दर. बधाई.
बहुत सुंदर .....!!निलेश जी समीर जी की टिप्पणी पे गौर कीजियेगा ....!!
खूब लिखी अंकल जी...________________'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर
समीर जी और आपकी टिपण्णी को कौन नज़रअंदाज कर सकता है
Ah!
जवाब देंहटाएंसही है..और पीटो!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना.
प्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंor is mahngai ke jamane me kab bhi kya sakte he ham,
जवाब देंहटाएंbahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बढ़िया
जवाब देंहटाएंमैं रोज सुबह
जवाब देंहटाएंउसे पहनता हूँ
रात को पीट पीट कर
धोता हूँ
और निचोड़कर सुखा देता हूँ
शायद उसे
हंसने की सजा देता हूँ !
वाह!! बहुत ही सुन्दर. बधाई.
बहुत सुंदर .....!!
जवाब देंहटाएंनिलेश जी समीर जी की टिप्पणी पे गौर कीजियेगा ....!!
खूब लिखी अंकल जी...
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'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर
समीर जी और आपकी टिपण्णी को कौन नज़रअंदाज कर सकता है
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