शनिवार, 21 जनवरी 2012

वनवास



ध्यान, साधना, सत्संग 
से कोसों दूर
कंक्रीट के जंगल में
सांसारिक वासनाओं 
और अहंकार तले
आध्यात्म रहित वनवास
भोग रहा हूँ इन दिनों,
मैं फिर से लौट कर आऊँगा 
जानता हूँ की तुम मुझे 
माफ करोगे 
और सहर्ष स्वीकार भी करोगे। 











शनिवार, 14 जनवरी 2012

सूर्य की पहली किरण





वो 
सूर्य की पहली किरण बन 
मेरे घर के आँगन में आए 
और जाड़े की एक ठंडी सुबह 
मुझे जी भर के 
अपनी किरणों से नहलाया ,
और मैं 
सुनहरी किरणों के 
सौन्दर्य से सराबोर हो कर 
फूलों की तरह खिल उठा 
और शायद अब 
इन्ही फूलों की तरह 
महकता रहूँगा एक सदी तक ।  

NILESH MATHUR

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