शनिवार, 24 जुलाई 2010

वो देते रहे दर्द, हम सहते रहे

कुछ क्षणिकाएँ............

(१)

मैं ओस की बूंदें बन
पत्तों पर लुढ़कता रहा
और वो 
भंवरा बन फूलों पर
मंडराते रहे!


(२)

मैं परवाना बन
शमा पर मंडराता रहा
और वो
लौ बनकर
मुझे जलाते रहे!


(३)

उनके आंसुओं को हमने
ज़मी ना छूने दी कभी 
और उन्होंने
हमारे ज़ख्म की
मरहम तक ना की!


(४)

उन्होंने कभी 
नज़रें उठाकर ना देखा हमें 
और हम 
बंद आँखों से भी
उनका दीदार करते रहे!


(५)

वो देते रहे दर्द
हम सहते रहे
उनकी बेवफाई को भी
हम वफ़ा कहते रहे!


(६)

हम उनकी
मासूमियत के कायल थे
पर वो
बेरहमी की मूरत निकले!


(७)

उन्होंने रिश्तों को 
कभी अहमियत ना दी
और हमने
रिश्तों के सहारे
ज़िन्दगी गुज़ार दी!

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

रेत

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रेत पर क़दमों के निशान 
एक पल में मिटा देती है हवाएं 

इसी तरह मिटा दिया था
हवा के इक झोंके ने मेरा वजूद,

और मैं ढूंढता फिर रहा हूँ 
अपने क़दमों के निशान
उसी रेत पर
जिस पर चला था दूर तक ,

और साथ ही तलाश 
अपने वजूद की,

रेत और हवाओं से 
बस यही रिश्ता है मेरा!

रविवार, 18 जुलाई 2010

रेतीली आँधियों और लू के थपेड़ों का आनंद

पिछले एक महीने से रेतीली आँधियों और लू के थपेड़ों का आनंद ले रहा था, दरअसल राजस्थान की सैर पर था, तापमान अपने चरम पर था पर फिर भी रेत से मेरे मोह के आड़े नहीं आ पाया, हाँ सभी की तरह सुबह उठते ही आसमाँ की तरफ इस उम्मीद में ज़रूर ताकता था की कहीं बारिश के कोई आसार नज़र आ जाएँ, पर इन्द्र तो आँखों पर शायद धूप का चश्मा लगा कर बैठे है उन्हें इस रेगिस्तान की गर्मी का अहसास नहीं है, मेरे एक मित्र विवेक की सुनाई कुछ पंक्तियाँ अक्सर मुझे याद आती थी............................



"यहाँ नदियों पर
बरसते है मेघ मेरे देश में
और बारिस को
तरसते हैं खेत मेरे देश में"



लेकिन फिर भी मेरा ये टूर बहुत ही शानदार रहा, कुछ पुराने दोस्त और कुछ पुरानी यादों के सुखद अहसास में कब समय व्यतीत हो गया पता ही नहीं चला, बचपन में जिस स्कूल में पढ़ा था देर तक उसके सामने खड़े हो कर उसे निहारता रहता था और एक बार फिर से बचपन में खो जाता था, पुराना शहर जिसकी हवेलियाँ बीकानेर की शान हैं वहां का एक चक्कर रोज़ लगाता था, वहां की शाम शानदार होती है,  इतने दिन रहने के बाद भी बहुत से लोगों से नहीं मिल पाया, और मेरे दिवंगत दोस्त गजेन्द्र की यादों ने बहुत परेशान किया!
अब फिर से ब्लोगिंग शुरु अब आप लोग झेलिये मुझे!
NILESH MATHUR

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