रविवार, 19 दिसंबर 2021

बड़े पेट वाले जादूगर


सपने वो भी देखते हैं 
जिनकी हथेलियाँ खुरदरी हैं
और पीठ पर
जिनके छाले हैं,
उनके माथे से
बहता पसीना
पलकों से हो कर
ज़मीन पर टपकता है,
वो पसीना धो देता है
पलकों में छुपे सपनों को
और उनके कुछ सपने
छीन लेते हैं
बड़े पेट वाले जादूगर
जिनकी तिजोरियों में
ढेर लगा है सपनों का
न जाने कितने सपने
दम तोड़ चुके हैं
इन तिजोरियों में,
लेकिन देखना
किसी दिन ये खुरदरे हाथ
इन तिजोरियों को तोड़ कर
अपने सपनों को छीन लेंगे,
और इन बड़े पेट वाले
जादूगरों के पेट
पीठ से चिपक जाएंगे
उस दिन।

आवारा बादल


आवारा बादल हूँ
कभी यहॉं तो कभी वहाँ
भटकना तो
फितरत है मेरी,
बस इक छोटी सी चाहत है
बंज़र भूमि पर बरसने की।

गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

जिनकी झुकी हुई है रीढ़

 


वो बहाते हैं पसीना

तुम्हारे लिए,
धूप से पका हुआ
उनकी देह का रंग
हाथो के छाले
सब तुम्हारे लिए,
वो झुकी हुई रीढ़
चेहरे की सलवटें
वो जलता बदन
सब तुम्हारे लिए,
वो खड़ा है
हाथ जोड़े हर जगह
तुम्हारे लिए,
अब देखना ये है
कि उनकी क्या अहमियत है
तुम्हारे लिए,
क्या तुम्हारी नज़रों में
ज़रा सा भी सम्मान है
उनके लिए,
जिनकी झुकी हुई है
रीढ़ तुम्हारे लिए।

रविवार, 12 दिसंबर 2021

हथौड़ा और छेनी


हथौड़ा चला, चलता रहा
छेनी भी मचलती रही
चोट पर चोट
माथे से टपकता पसीना,
पर वो हाथ रुकते नहीं
वो हाथ थकते नहीं
जिन्होने थामी है
हथौड़ा और छेनी,
चंद सिक्कों की आस में
अनवरत चलते वो हाथ
आग उगलते सूरज को
ललकारते वो हाथ,
क्या देखा है तुमने
कभी उन हाथों को नजदीक से
जिन हाथों ने
थामा है हथौड़ा और छेनी।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

आज फिर से


आज फिर से
भूख पसरी होगी
कुछ आशियानों में
और कहीं पकवान बनेंगे,
आज फिर से
कोई मरेगा भूख से
और किसी को
बदहजमी की शिकायत होगी,
आज फिर से
धूप में झुलसेगी पीठ किसी की
और कोई पसरा होगा
ठंडी छाँव में,
आज फिर से
किसी की आँखे बरसेंगी
और कोई बेशर्मी से
खिलखिलाएगा कहीं,
आज फिर से
किसी घर मे अंधेरा होगा
और किसी का घर
रोशनी से जगमगाएगा,
आज फिर से
कोई पसीना बहाएगा
और कहीं
छलकेंगे जाम,
आज फिर से
छलनी होंगे उसके अरमान
और कहीं
जश्न मानेगा,
आखिर कब तक
ये सिलसिला चलेगा।


रविवार, 5 दिसंबर 2021

मज़बूत खुरदरे हाथ

कुछ नाजुक मुलायम हाथ
जिन्होंने पहनी है
सोने की अंगूठियाँ
वो कर रहे हैं राज,
उन मज़बूत खुरदरे
और मेहनतकश हाथों पर
जिनके खून और पसीने से
ये धरती लाल है,
लोहे से मजबूत हाथ
शेर सा ज़िगर
फिर भी कर रहें है राज
कुछ नाज़ुक मुलायम हाथ,
लेकिन कभी ना कभी
ये मज़बूत खुरदरे हाथ
अपना हक़ छीन कर
फिर से करेंगे राज,
और वो नाज़ुक मुलायम हाथ
डर से खोल देंगे
अपनी सोने की अंगूठियाँ।

गुरुवार, 14 मई 2020

क्या कहा सच बोलूँ?


क्या कहा सच बोलूँ
या मन की आँखे खोलूँ?
क्या हँसी खेल है सच बोलना
जो मैं सच बोलूँ,
मैने भी
बोला था सच कभी
जो कुचला गया
झूठ के पैरों तले,
अब मैं
सच बोलने की
हिमाकत करता नहीं
और किसी से
सच बोलने को कहता नहीं।
NILESH MATHUR

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