शनिवार, 24 अप्रैल 2010

सपने !

सोचा की आप लोग बोरियत महसूस करने लगे होंगे मेरी कमीज, पतलून, जूता और ट्रांजिस्टर से इसलिए कुछ अलग लिखने की कोशिश की है! हर इंसान सपने देखता है, हर सपना पूरा हो ज़रूरी नहीं है, अक्सर कई सपने टूट जाते है और टूटकर बिखर जाते है, पर हम फिर भी बाज नहीं आते सपने देखने से .............


मेरे वो सपने 
जिन्हें बंद मुट्ठी में लिए 
निकलता था घर से
इस शहर की भीड़ में 
फिसल कर हाथों से
कुचले गए पैरों तले,


मेरे उन सपनों को रौंद कर 
गुज़र गयी भीड़,


और मैं उन सपनों की 
अस्थियाँ बटोर कर
फिर से 
घर आ जाता हूँ
और अपनी आँखों को 
और सपने ना देखने की
हिदायत देता हूँ,


पर मेरी आँखें
फिर भी और सपने देखने से
बाज़ नहीं आती
फिर से कोई सपना
परों तले कुचलने के लिए 
आँखों में तैयार है!

10 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi umdaah rachna...
    yun hi lkihte rahein..humein bhi kuch seekhne ko milta hai...
    kabhi mere blog par v aayein...
    http://i555.blogspot.com/

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  2. सपनों की भी आदत कुछ ऐसी ही होती है, जितना रोको और आते हैं..आँखों का कोई दोष नहीं.

    उम्दा रचना!

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  3. नये नये सपने आने भी चाहिये सपने यानि आशा । सुंदर कविता ।

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  4. sach kaha aapne .sapne to mrig trishna ki tarah hi hote hai. jo toot jaane par bhi fir se ham sapne dekhane lagte hai,aur dekhana bhi chahiye ,tabhi to manjil milti hai.
    poonam

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  5. निलेश जी देखते रहिये कभी तो पूरे होंगे ....न भी हुए तो उम्मीद है तो ज़िन्दगी है ......!!
    बहुत जल्दी जल्दी डाल रहे हैं .....सप्ताह में एक ही डालिए .....!!

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  6. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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  7. सत्य के मार्ग पर चलने से कोई नहीं गिरता
    वो हमारी अपनी चूक होती है विना
    आत्मग्यान क ए सत्य नजर भी नहीं आता

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  8. सपना देखना कोई बुरी बात नहीं..हाँ उनके पूरे होने की आस लगाये रखना शायद ठीक नहीं. हर नया दिन जीवन में एक नयी उम्मीद के साथ आता है. ज़रूरत है सिर्फ कोशिशें जारी रखने की.

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NILESH MATHUR

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