शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

अब के बरस

और रक्त नहीं बहेगा  
अमन औ चैन होगा
अब के बरस,
रक्त रंजित इतिहास देख
पाषाण ह्रदय पिघलेंगे
अब के बरस,
बगावत की आंधियां थमेगी
उजड़े हुए चमन खिलेंगे
अब के बरस,
और आँसू नहीं बहेंगे
चेहरों पर मुस्कान रहेगी
अब के बरस,
बेफिक्र बचपन होगा
उमंग भरी जवानी
अब के बरस,
वृद्धजनों के चेहरे पर भी
गर्वीली मुस्कान रहेगी
अब के बरस,
नहीं बिकेंगे जिस्म यहाँ पर
ना होगा कोई चीरहरण
अब के बरस,
इन्द्र करेंगे स्नेह की वर्षा
शीतल होकर सूर्य रहेंगे
अब के बरस,
खेतों की मुस्कान देख
किसान ह्रदय पुलकित होंगे
अब के बरस,
सीना ताने पर्वत होंगे
निर्भय होकर वृक्ष रहेंगे
अब के बरस,
संस्कारों की जीत होगी 
विजयी होगा धर्मं
अब के बरस,
एक नया इतिहास रचेंगे
और रचेंगे नयी कहानी
अब के बरस!!!

रविवार, 19 दिसंबर 2010

गुज़ारिश

मेरी मौत पर 
आँसू मत बहाना 
जश्न मनाना,


जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना,


याद जब आये मेरी 
तो ठहाके लगाना
मेरी कमी गर महसूस हो 
तो महफ़िल सजाना,


जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना, 


तुम चाहे 
भुला दो मुझको
मैं मर कर भी 
भुला ना पाउँगा तुम्हे, 



मैं मर कर भी जिन्दा रहूँगा 
ख्यालों में तुम्हारे
अक्सर आया करूंगा
ख़्वाबों में तुम्हारे,


अब ना सिकवा है किसी से 
ना शिकायत
ना ही बाकी 
कोई आरजू है,


मंजिल करीब 
और करीब आती जा रही है
शुक्रिया उनका 
जो मेरे हमसफ़र रहे,


अब तो 
इक यही गुज़ारिश है मेरी......


कि मेरी मौत पर
आँसू मत बहाना
जश्न मनाना,


जिक्र जब भी हो मेरा
तो मुस्कुराना! 

रविवार, 12 दिसंबर 2010

ये समर्पण है या नियति

तूँ है 
सागर की इक लहर 
और मैं सागरतट,    
तूँ चूमती है 
मुझे बार बार 
और मैं 
तुझे बाहों में ले कर 
तेरे अस्तित्व को
मिटा देता हूँ 
हर बार,
ये सिलसिला 
सदियों से चल रहा है 
और सदियों तक
यूँ ही चलता रहेगा 
ना तुम थक कर
हार मानोगी 
ना ही मैं 
कभी इनकार करूंगा 
तुम्हे बाहों में लेने से,
लेकिन प्रश्न 
तुम्हारे अस्तित्व का है
कब तक तुम 
अपने अस्तित्व को
यूँ ही मिटाती रहोगी
और मुझमे समाती रहोगी ?
ये तुम्हारा समर्पण है 
या फिर 
यही तुम्हारी नियति है ?
NILESH MATHUR

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