बुधवार, 21 अप्रैल 2010

मेरा जूता !

मेरे पैर का अंगूठा 
अक्सर मेरे 
फटे हुए जूते में से 
मुह निकाल कर झांकता है 
और कहता है... 
कम से कम अब तो 
रहम करो
इस जूते पर और मुझ पर 
जब भी कोई पत्थर देखता हूँ 
तो सहम उठता हूँ , 
इतने भी बेरहम मत बनो 
किसी से कर्ज ले कर ही 
नया जूता तो खरीद लो !

19 टिप्‍पणियां:

  1. आईये... दो कदम हमारे साथ भी चलिए. आपको भी अच्छा लगेगा. तो चलिए न....

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  2. क्या बात है. बहुर सुंदर. एक बात तो बताएं ये
    हसीं वादियाँ कहा की हैं.

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  3. बहुत ही सुन्दर, शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!

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  4. आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

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  5. wah sir kya baat hai..
    aapki kavitayen bilkul alag tarah ki rehti hain..humein khoob pasand hai :)

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  6. बहुत ही शानदार और अलग अनदाज़ में सुंदर प्रस्तुति....

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  7. भूख की गिरफ्त में तन भी ढका नहीं जाता
    फिर जूतियाँ तो आखिरी अंजाम होती हैं|
    बहुत ही बढ़िया|
    रत्नेश त्रिपाठी

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  8. बहुत गंभीर दर्शन...सच कहता हूँ विचार मार्मिक हैं


    फिर भी हंसी आ गई कि कमीज और पतलून पहले ही फटी थी और अब जूता भी दगा दे गया// ये क्या हालत बना रखी है.

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  9. देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी.

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  10. धार्शनिक बन गये आप तो । बहुत साल पहले की बात है एक दिन बेटे ने कहा था माँ मेरी इस वाली उंगली को ठंडा लगता है, क्यूं कह कर जो मैने देखा तो जूते में छेद । आपकी कविता ने वही बात याद दिला दी दुबारा ।

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  11. priy bandhu,
    mere blog par aap aaye or meri kawitaa padi or comment karke meri houslaa afjaai ki jisse ki hrday ko assem prasnntaa hui ,aapkaa koti koti dhanywaad

    aapki rachit kawitaa jootaa padi jisme aapne waastviktaa ko maano uker diyaa ho ,bhawishy me bhi aisee kawitten likhte raho

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  12. कितनी गहरी बात कितनी सरलता से कह दी………गज़ब

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  13. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...अभी आपको पढ़ा रश्मि जी के ब्‍लॉग शख्‍स मेरी कलम से ...आपका परिचय अच्‍छा लगा शुभकामनाओं के साथ आभार ।

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  14. गहरी और संवेदनायुक्‍त अभिव्‍यक्ति है। आपकी नारी कविता भी एक अलग अंदाज में कही गई बात का परिचायक है। शुभकामनाएं।

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  15. मार्मिक रचना .अच्छा लगा आपके ब्लॉग आके .

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NILESH MATHUR

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