शनिवार, 28 मई 2011

हे नारी, तुम सच कहना

हे नारी  
तुम सच कहना 
क्या समझी है तुमने 
एक पुरुष की व्यथा
एक निर्धारित 
मानसिकता से परे 
उसका कोमल मन,


सच कहना 
क्या देखा है तुमने   
पसीने से लथपथ 
थककर चूर 
हँसते मुस्कुराते हुए 
रिश्तों की भारी पोटली 
पीठ पर लादे पुरुष,


सच कहना 
क्या देखा है तुमने
तपते रेगिस्तान में 
नंगे पैर चलता पुरुष 
या अभिमन्यु की तरह
चक्रव्यूह में फंसा पुरुष ,


सच कहना 
क्या महसूस किया है तुमने 
कि पुरुष 
सिर्फ बिस्तर पर ही नहीं
अपने अंतर की गहराइयों से भी
प्रेम करता है तुम्हे ,


सच कहना 
क्या कभी देखा है तुमने
इस पत्थर दिल पुरुष को
पिघल कर बहते हुए
या ओस की बूंदें बन 
पत्तों पर लुढ़कते हुए,  


सच कहना
क्या तुम्हारे रूठने पर 
नहीं मनाता पुरुष
या तुम्हारी उलझी हुई लटों को 
नहीं सुलझाता पुरुष,


या तुम अब भी कहती हो 
कि अत्याचारी है पुरुष!

24 टिप्‍पणियां:

  1. ab kya kahe ........
    itna sunder jo likha hai aapne .
    maan gaye jee.

    bahut sunder abhivykti.

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  2. पुरुष की भावना को समझती हुई सुंदर रचना , आभार

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, हर पुरुष का एक ही रूप नहीं होता नहीं तो ये सृष्टि ख़त्म हो जाती. धरा अपने संतुलन के लिए अगर नारी को सहनशीलता देती हैं तो पुरुष भी आकाश सा विशाल और गंभीर होता है , जल्दी मुखरित नहीं होता बल्कि उसको अहसास सेजाना जाता है. . नहीं एक पहिये से गाड़ी चला करती है. अपना पाक्स सुंदर शब्दों में रखा है.
    बहूटी बहुत शुभकामनाएं.

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  4. पुरुष मन की कोमल भावनायें व्यक्त की गयी हैं मगर ये सब पर लागू नही होता और ना ही सब पुरुष और सब नारियाँ एक जैसे होते हैं…………बेहद खूबसूरती से आपने पुरुश मन के भावों को उकेरा है…………बधाई।

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. पत्थर की हे नारी, ये बाद तो सदियों पुरानी हे हाँ इस युग में कहाँ हे अवला नारी ,कहाँ हे अब राम लला का युग की धरती में समायी हो नारी ,,,,हे तो बस २० इंच के बक्से (टेलीविजन )में कैद आज की नारी,वही से तो शुरु होती हे बर्बादी सारी .......... ,बड़े अच्छे विचार हे आपके माथुर जी आपने सही कहा..,,,,,,

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  7. आपके सभी प्रश्न वाजिब है.....सुन्दर लेखनी

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  8. या तुम अब भी कहती हो
    कि अत्याचारी है पुरुष!
    ..एक यक्ष प्रश्न! अत्याचार कोई भी कर सकता है...
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति...

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  9. बेहद सशक्त अभिव्यक्ति पुरुष और कोमल मन जो वो आसानी से किसी को दिखाता नहीं क्योंकि कहते हैं की मर्द को दर्द नहीं होता पर दर्द होता भी है और वो उसे दिखा भी नहीं सकता
    आभार

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  10. पुरुष और स्त्री दोनों को इस तरह के प्रश्न पूछने का अधिकार है।
    बहुत अच्छी कविता, नीलेश जी, शुभकामनाएं।

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  11. सच कहना
    क्या तुम्हारे रूठने पर
    नहीं मनाता पुरुष
    या तुम्हारी उलझी हुई लटों को
    नहीं सुलझाता पुरुष,

    बहुत सुंदर कविता,
    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    मनोभावों का बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने!

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  13. एक दिल की गहराइयों से निकले प्रश्न का उत्तर तलाशती कविता !

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  14. सच कहना
    क्या कभी देखा है तुमने
    इस पत्थर दिल पुरुष को
    पिघल कर बहते हुए
    या ओस की बूंदें बन
    पत्तों पर लुढ़कते हुए, बहुत सुन्दर ... पुरूष की कठोरता के पीछे छिपी कोमलता का बखूबी चित्रण

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  15. बहुत अच्छी दलील पेश की है ! सुंदर कविता

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  16. लोग नहीं समझते सिर्फ समझाते हैं !
    शुभकामनायें नीलेश !

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  17. इस कविता के माध्यम से कितनी ही सरलता और सौम्यता के साथ जो आपने सन्देश दिया है, वो बहुत ही प्रशंशनीय है...
    वटवृक्ष के लिंक से पहली बार आना हुआ.. बहुत धन्यवाद..
    (उपरोक्त कमेन्ट- वटवृक्ष पर इस कविता 'हे नारी, तुम सच कहना' के लिए..

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NILESH MATHUR

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