हे नारी
क्या समझी है तुमने
एक पुरुष की व्यथा
एक निर्धारित
मानसिकता से परे
मानसिकता से परे
उसका कोमल मन,
सच कहना
क्या देखा है तुमने
पसीने से लथपथ
थककर चूर
हँसते मुस्कुराते हुए
रिश्तों की भारी पोटली
पीठ पर लादे पुरुष,
सच कहना
क्या देखा है तुमने
तपते रेगिस्तान में
नंगे पैर चलता पुरुष
या अभिमन्यु की तरह
चक्रव्यूह में फंसा पुरुष ,
सच कहना
क्या महसूस किया है तुमने
कि पुरुष
सिर्फ बिस्तर पर ही नहीं
सिर्फ बिस्तर पर ही नहीं
अपने अंतर की गहराइयों से भी
प्रेम करता है तुम्हे ,
सच कहना
क्या कभी देखा है तुमने
इस पत्थर दिल पुरुष को
पिघल कर बहते हुए
या ओस की बूंदें बन
पत्तों पर लुढ़कते हुए,
सच कहना
क्या तुम्हारे रूठने पर
नहीं मनाता पुरुष
या तुम्हारी उलझी हुई लटों को
नहीं सुलझाता पुरुष,
या तुम अब भी कहती हो
कि अत्याचारी है पुरुष!
ab kya kahe ........
जवाब देंहटाएंitna sunder jo likha hai aapne .
maan gaye jee.
bahut sunder abhivykti.
पुरुष की भावना को समझती हुई सुंदर रचना , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, हर पुरुष का एक ही रूप नहीं होता नहीं तो ये सृष्टि ख़त्म हो जाती. धरा अपने संतुलन के लिए अगर नारी को सहनशीलता देती हैं तो पुरुष भी आकाश सा विशाल और गंभीर होता है , जल्दी मुखरित नहीं होता बल्कि उसको अहसास सेजाना जाता है. . नहीं एक पहिये से गाड़ी चला करती है. अपना पाक्स सुंदर शब्दों में रखा है.
जवाब देंहटाएंबहूटी बहुत शुभकामनाएं.
sach dikhlati rachna
जवाब देंहटाएंपुरुष मन की कोमल भावनायें व्यक्त की गयी हैं मगर ये सब पर लागू नही होता और ना ही सब पुरुष और सब नारियाँ एक जैसे होते हैं…………बेहद खूबसूरती से आपने पुरुश मन के भावों को उकेरा है…………बधाई।
जवाब देंहटाएंvery beautiful lines !!
जवाब देंहटाएंI really enjoyed reading it.
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जवाब देंहटाएंपत्थर की हे नारी, ये बाद तो सदियों पुरानी हे हाँ इस युग में कहाँ हे अवला नारी ,कहाँ हे अब राम लला का युग की धरती में समायी हो नारी ,,,,हे तो बस २० इंच के बक्से (टेलीविजन )में कैद आज की नारी,वही से तो शुरु होती हे बर्बादी सारी .......... ,बड़े अच्छे विचार हे आपके माथुर जी आपने सही कहा..,,,,,,
जवाब देंहटाएंआपके सभी प्रश्न वाजिब है.....सुन्दर लेखनी
जवाब देंहटाएंबहुत गम्भीर प्रश्न हैं। इनका जवाब तो नारी ही दे सकती है।
जवाब देंहटाएं---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
या तुम अब भी कहती हो
जवाब देंहटाएंकि अत्याचारी है पुरुष!
..एक यक्ष प्रश्न! अत्याचार कोई भी कर सकता है...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...
अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त अभिव्यक्ति पुरुष और कोमल मन जो वो आसानी से किसी को दिखाता नहीं क्योंकि कहते हैं की मर्द को दर्द नहीं होता पर दर्द होता भी है और वो उसे दिखा भी नहीं सकता
जवाब देंहटाएंआभार
पुरुष और स्त्री दोनों को इस तरह के प्रश्न पूछने का अधिकार है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता, नीलेश जी, शुभकामनाएं।
सच कहना
जवाब देंहटाएंक्या तुम्हारे रूठने पर
नहीं मनाता पुरुष
या तुम्हारी उलझी हुई लटों को
नहीं सुलझाता पुरुष,
बहुत सुंदर कविता,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमनोभावों का बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने!
All are not alike , some men are very emotional.
जवाब देंहटाएंएक दिल की गहराइयों से निकले प्रश्न का उत्तर तलाशती कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...लाजवाब प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंसच कहना
जवाब देंहटाएंक्या कभी देखा है तुमने
इस पत्थर दिल पुरुष को
पिघल कर बहते हुए
या ओस की बूंदें बन
पत्तों पर लुढ़कते हुए, बहुत सुन्दर ... पुरूष की कठोरता के पीछे छिपी कोमलता का बखूबी चित्रण
बहुत अच्छी दलील पेश की है ! सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंलोग नहीं समझते सिर्फ समझाते हैं !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें नीलेश !
पुरुष मन की सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस कविता के माध्यम से कितनी ही सरलता और सौम्यता के साथ जो आपने सन्देश दिया है, वो बहुत ही प्रशंशनीय है...
जवाब देंहटाएंवटवृक्ष के लिंक से पहली बार आना हुआ.. बहुत धन्यवाद..
(उपरोक्त कमेन्ट- वटवृक्ष पर इस कविता 'हे नारी, तुम सच कहना' के लिए..