गमले में लगा
पौधा बन गया हूं
ना तो मेरी जड़ें
ज़मीन को छू पाती हैं
ना ही मैं आसमान को चूम पाता हूँ ,
चाहता हूं
कि कोई मुझे
गमले से निकाल कर
फिर से ज़मीन में लगा दे
ताकी मैं फिर से
अपनी मिट्टी में मिल जाऊ
और आसमान की उचाईयों को छू पाऊ।
आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
गमले में लगा
पौधा बन गया हूं
ना तो मेरी जड़ें
ज़मीन को छू पाती हैं
ना ही मैं आसमान को चूम पाता हूँ ,
चाहता हूं
कि कोई मुझे
गमले से निकाल कर
फिर से ज़मीन में लगा दे
ताकी मैं फिर से
अपनी मिट्टी में मिल जाऊ
और आसमान की उचाईयों को छू पाऊ।
आवारा बादल हूँ
कभी यहॉं तो कभी वहाँ
भटकना तो
फितरत है मेरी,
बस इक छोटी सी चाहत है
बंज़र भूमि पर बरसने की।
कुछ नाजुक मुलायम हाथ
जिन्होंने पहनी है
सोने की अंगूठियाँ
वो कर रहे हैं राज,
उन मज़बूत खुरदरे
और मेहनतकश हाथों पर
जिनके खून और पसीने से
ये धरती लाल है,
लोहे से मजबूत हाथ
शेर सा ज़िगर
फिर भी कर रहें है राज
कुछ नाज़ुक मुलायम हाथ,
लेकिन कभी ना कभी
ये मज़बूत खुरदरे हाथ
अपना हक़ छीन कर
फिर से करेंगे राज,
और वो नाज़ुक मुलायम हाथ
डर से खोल देंगे
अपनी सोने की अंगूठियाँ।