आवारा बादल
आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
बुधवार, 6 मार्च 2013
प्रकृति
ईश्वर अगर तुम हो कहीं
तो सो जाना ओढ़कर चादर वहीं
तुमने जो सृष्टि रची
उसका नाश कर रहे हम
सर्वत्र विनाश कर रहे हम
मत देखना नेत्र खोलकर
इसका जो हाल कर रहे हम।
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NILESH MATHUR
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