(1)
पर्दा करने लगी है
आजकल शर्म
बेहयाई
घूँघट उठा रही है।
(2)
मैं कोशिश करूंगा
कि सिर्फ शब्दों के जाल ना बुनू
शब्दों के परे भी इक जहाँ है
कभी उधर का भी रूख करूँ।
(3)
वो अवरोधों से
बचकर निकल जाते हैं
हमें अवरोधों से बचना नहीं
उन्हे ध्वस्त करना है।
आधार बनाता है
अतीत के आँगन मे बिखरे
सपनों को साकार बनाता है।
(5)
दर्द को
सार्वजनिक बना देते हैं आँसू
और सहानुभूति का पात्र
बना देते हैं आँसू।
दर्द को
सार्वजनिक बना देते हैं आँसू
और सहानुभूति का पात्र
बना देते हैं आँसू।