शनिवार, 15 नवंबर 2014

उनके बारे में जो बहाते हैं पसीना....


क्या सोचा है कभी 
उन हाथों के बारे में 
जिन हाथों ने 
बोए थे बीज, उगाई थी फसल,

क्या सोचा है कभी उनके बारे में 
जिन्होने बहाया था पसीना 
और बनाए थे वो झरोखे
जहाँ से आती है पुरसुकून हवा और धूप,

कभी फुर्सत मिले 
तो झरोखा खोल कर देखना
इसे बनाने वाला 
कहीं खुले आसमान तले सोता दिखेगा,

और शाम को 
लज़ीज़ पकवान खा कर 
जब टहलने जाओगे
तो दिखेगा कहीं ना कहीं 
मिट्टी से सना वो शख्स भी 
जिसने बोए थे बीज और उगाई थी फसल,

फर्क सिर्फ ये है 
कि उसे मेहनत कर के भी 
भर पेट ना मिला 
और तुम इतना खा लेते हो 
कि हजम करने के लिए भी टहलना पड़ता है,

कोई बात नहीं 
अगर जल्दी उठ सको 
तो सुबह उठ कर देखना 
उस चेहरे को 
जो हर सुबह ढोता है तुम्हारा मैल,

शायद जाग जाए 
तुम्हारे अंदर सोया हुआ इंसान 
और देख सके इन तिरस्कृत चेहरों को 
जिनके साये तले हम ज़िंदा हैं 
हँसते खेलते हुए खाते पीते हुए 
और जाम हाथ मे लिए 
संगीत सुनते हुए। 

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

दीपावली



आज फिर से 
हम दीपावली मनाएंगे 
जिनके घरों में 
चूल्हे भी नहीं जले
उन्हें शर्मशार करते हुए 
घी के दीप जलाएँगे,

धमाकों की आवाज में
छुप जाएंगा रुदन उनका   
और वो भूखे पेट निहारेंगे 
रोशनी से जगमगाते शहर को,

आज फिर से 
हम भूखे नंगों के बीच 
नए कपडे पहन कर निकलेंगे
और नोटों के बण्डल 
पटाखों के रूप में जलाएँगे,

कोई बिनब्याही बेटी का बाप
दहल जाएगा इनके धमाकों से
और कोई बच्चा 
हसरत भरी निगाहों से 
निहारेगा फुलझड़ियों को ,

आज फिर से 
हम इन बुझे हुए चेहरों के बीच
दीप जलाएँगे
और दीपावली मनाएंगे,


क्या ये दीप 
उन बुझे हुए चेहरों को 
रोशन कर पाएँगे?

क्या ये दीप 
उन अन्धकार में डूबे घरों को
ज़रा सी रोशनी दिखाएँगे? 

क्या ये दीप 
हमारे अंतर के अन्धकार को 
मिटा पाएंगे ? 

क्या हम सचमुच 


कभी रोशनी में नहाएँगे ?
  

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

क्षणिकाएँ



1.
गंगा में डुबकी लगाई
पापों से मुक्ति पायी ,
फिर शुरू होंगे
नए सिरे से अनवरत पाप!

2.
हर कि पौडी
हर लेती हर पाप
और हम
फिर से तरोताजा
और पाप करने को !

3.
खुदा की इबादत भी
कर के देख चुका मैं
पर मेरी दुश्वारियों की ज़िद
शुभानअल्लाह !

4.
जब हताश हो उठता है मन
तो बेजान पत्थरों में
नज़र आती है उम्मीद कि किरण
और फिर पूजने लगते हैं
पत्थरों को देवता बनाकर!


शनिवार, 25 जनवरी 2014

महात्मा गांधी के नाम एक ख़त


पूज्य बापू
सादर प्रणामआपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना
हमें पूर्ण विश्वास है कि आप कुशलता से होंगे। हम सब भी यहाँ मजे में हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश और समाज की स्थिति से आपको अवगत करवाने के लिए मैंने ये ख़त लिखना अपना कर्तव्य समझा। कुछ बातों के लिए हम आपसे माफ़ी चाहते हैं जैसे कि आपके बताए सत्य और अहिंसा के सिद्धांत में हमने कुछ परिवर्तन कर दिए हैं, इसे हमने बदल कर असत्य और हिंसा कर दिया है, और इसमें हमारे गांधीवादी राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा योगदान रहा है, वो हमें समय समय पर दिशाबोध कराते रहते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। इन्हीं के मार्गदर्शन में हम असत्य और हिंसा के मार्ग पर निरंतर अग्रसर हैं, बाकी सब ठीक है।
आपने हमें जो आज़ादी दिलवाई उसका हम भरपूर फायदा उठ रहे हैं। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, बाकी सब ठीक है।
हर सरकारी विभाग में आपकी तस्वीर दीवारों पर टँगवा दी गयी है और सभी नोटों पर भी आपकी तस्वीर छपवा दी गयी है। इन्हीं नोटों का लेन-देन हम घूस के रूप में धड़ल्ले से कर रहे हैं, बाकी सब ठीक है। स्वराज्य मिलने के बाद भी भूखे नंगे आपको हर तरफ नज़र आएँगे, उनके लिए हम और हमारी सरकार कुछ भी नहीं कर रहे हैं, हमारी सरकार गरीबी मिटाने की जगह गरीबों को ही मिटाने की योजना बना रही है, बाकी सब ठीक है।
बापू हमें अफ़सोस है की खादी को हम आज तक नहीं अपना सके हैं, हम आज भी विदेशी वस्त्रों और विदेशी वस्तुओं को ही प्राथमिकता देते हैं, बाकी सब ठीक है।
अस्पृश्यता आज भी उसी तरह कायम है। जिन दलितों का आप उत्थान करना चाहते थे, उनकी आज भी कमोबेश वही स्थिति है, बाकी सब ठीक है।
बापू आजकल हम सत्याग्रह नहीं करते, हमने विरोध जताने के नए तरीके इजाद किये हैं। आज कल हम विरोध स्वरुप बंद का आयोजन करते हैं और उग्र प्रदर्शन करते हैं, जिसमें कि तोड़फोड़ और आगज़नी की जाती है, बाकी सब ठीक है।
जिस पाकिस्तान की भलाई के लिए आपने अनशन किये थे, वही पाकिस्तान आज हमें आँख दिखाता है, आधा काश्मीर तो उसने पहले ही हड़प लिया था, अब उसे पूरा कश्मीर चाहिए। आतंकियों की वो भरपूर मदद कर रहा है। हमारे देश में वो आतंक का नंगा नाच कर रहा है। आये दिन बम के धमाके हो रहे हैं और हजारों बेगुनाह फिजूल में अपनी जान गँवा रहे हैं, वो हमारे जवानों के सिर काट कर धड़ल्ले से ले जाता है बाकी सब ठीक है,
बांग्लादेश के साथ भी हम पूरी उदारता से पेश आ रहे हैं, वहां के नागरिकों को हमने अपने देश में आने और रहने की पूरी आज़ादी दे रखी है, करोड़ों की संख्या में वे लोग यहाँ आकर मजे में रह रहे हैं, और हमारे ही लोग उनकी वजह से भूखे मर रहे हैं, बाकी सब ठीक है।
बापू हम साम्प्रदायिक भाईचारा आज तक भी कायम नहीं कर पाए हैं। धर्म के नाम पर हम आये दिन खून बहाते हैं। आज हमारे देश में धर्म के नाम पर वोटों की राजनीति खूब चल रही है। साम्प्रदायिक हिंसा आज तक जारी है। बाकी सब ठीक है।
कसाब जैसे आतंकी की हमने खूब खातिरदारी की लेकिन अंत मे उसे फाँसी दे दी,
अफजल गुरु जैसे कुछ आतंकियों की हम अब भी खूब खातिरदारी कर रहे हैं बाकी सब ठीक है, आपके अहिंशा के सिद्धांत का अनुशरण करते हुए हमारे राष्ट्रपति बलात्कारियों और जघन्य अपराधियों की सजा भी माफ कर देते हैं बाकी सब ठीक है, हमे पूर्ण विश्वास है की दामिनी के बलात्कारियों का भी हमारे राजनेता बाल भी बांका होने नहीं देंगे, और हमारे देश मे ये सब इसी तरह चलता रहेगा, बाकी सब ठीक है,
बापू आज आप साक्षात यहाँ होते तो आपको खून के आंसू रोना पड़ता, बापू आपने नाहक ही इतना कष्ट सहा और हमें आज़ादी दिलवाई, हो सके तो हमें माफ़ करना।

आपका अपना-
एक गैर जिम्मेदार भारतीय नागरिक


शनिवार, 18 जनवरी 2014

मैं एक आम आदमी




मैं एक आम आदमी
अब भी नहीं पहुंची है
परिवर्तन की लहर
मेरे जीवन मे,
सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात
हर सुबह फिर से ले आती है
अनगिनत चिंताओं की सौगात,
डरा सहमा सा
गुजारता हूँ दिन किसी तरह
छुपता हूँ मकान मालिक से
और सुनता हूँ ताने बीवी के,
हर सुबह निकलता हूँ घर से
बच्चों की फीस और
रासन की चिंता लिए
और दिन ढले फिर से
खाली हाथ लौट आता हूँ,
जीने की जद्दोजहद मे
और रोज़मर्रा की जरूरतों मे उलझा
मैं एक आम आदमी 
बिता देता हूँ
आँखों ही आँखों मे सारी रात,
इस आस मे
कि कल तो होगी
एक नयी सुबह  
जब मैं बच्चों को
बाज़ार ले कर जाऊंगा,
और बीवी को
एक नयी साड़ी दिलवाऊंगा,
एक नयी सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात मेरी


मैं हूँ एक आम आदमी। 

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

प्रेम क्या है?



प्रेम क्या है?
धोखा, फरेब या वफ़ा है,
या किसी कि रगों में बहता
नशा है,
ये महज़ 
एक खुबसूरत लफ्ज़ है
या भावनाओ से
खिलवाड़ करने का अचूक अस्त्र है,
त्याग है बलिदान है
या बहेलिये का जाल है,
नहीं नहीं 
ये तो शायद 
ईश्वर का वरदान है। 



शनिवार, 11 जनवरी 2014

जब से पीने लगा हूँ मैं



पीने लगा हूँ अब 
शराब मैं
ना गम है अब
ना दर्द का एहसास है, 
जीने लगा हूँ अब
जब से पीने लगा हूँ मैं
ना उनकी याद आती हैं अब
ना ख्वाबों मे सताती है वो,
जब से पीने लगा हूँ मैं
जी भर के जीने लगा हूँ मैं। 
NILESH MATHUR

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