देखता हूँ अन्याय
और सहता हूँ जुल्म
गूंगा नहीं हूँ
फिर भी चुप रहता हूँ,
हर तरफ कोहराम है
चौराहे पर बिक रहा ईमान है
अंधा नहीं हूँ
फिर भी आँखें बंद रखता हूँ,
दर्द से चीख रहे हैं
परिंदे, पर्वत, पेड़-पौधे
सुन रहा हूँ चित्कार
फिर भी बहरा बना रहता हूँ।
नफरत के सौदागर
कत्ल करने पर आमाद हैं
इंसानियत का
फिर भी अनजान बना रहता हूँ,
लुट रही है आबरू किसी की
तो बिक रहे हैं जिस्म कहीं
कहने को इंसान हूँ
फिर भी तमाशबीन बना रहता हूँ,
कब तक चुप रहूँ
कब तक सहूँ
पशुओं की तरह जीता रहूँ
या अब इंसान बनूँ।