कभी कभी कलमलाचार सी शब्दों को निहारती है
और शब्द
निष्ठुर बन जाते हैं,
और कभी कभी भावनाएं
शब्दों का रूप धर बहती है
तब कलम
पतवार बन जाती है
शब्दों को पार लगाती है ,
और फिर भीगे हुए शब्द
वस्त्र बदल कर
सज संवर कर
कागज़ पर उतर आते हैं
और रचना बन जाते हैं!
