क्या हुआ जो तुम
चालीस के पार हो गयी हो,
थोड़ी सी झुर्रियां पड़ने लगी हैं
पर उतनी ही खूबसूरत हो तुम अब भी,
तुम्हारे चेहरे पे नूर है
और आँखें नशीली हैं अब भी,
तिरछी नज़रों से देखते हैं
मनचले तुम्हें अब भी,
तुम्हारी खूबसूरती पे
मर मिटने को तैयार हैं कई अब भी,
जब तुम घर से निकलती हो
तो आहें भरते हैं लोग अब भी,
शर्मा जाता है आईना
तुम्हें देख कर अब भी,
क्या हुआ जो तुम
चालीस के पार हो गयी हो,
पहले से ज्यादा
जवान दिखती हो अब भी।