शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

हाँ मुझे प्रेम है

हाँ मुझे प्रेम है
बादलों से, बारिश की बूंदों से
रेत से, हवाओं से
दरख्तों से, पर्वतों से
प्रकृति से
ईश्वर की हर कृति से,
और प्रेम है तो
दर्द भी होगा,
जब पर्वतों को
जमींदोज किया जाता है
तो याद आते हैं मुझे
बामियान के बुद्ध
जिन्हें तालिबान ने
जमींदोज किया था,
जब दरख्तों के सीने पर
चलते हैं खंजर
तो याद आते हैं मुझे
ईशा मसीह
जिनका रक्त
भलाई करने कि एवज में
बहा दिया गया,
और प्रकृति से जब
छेड़छाड़ होती है
तो याद आता है मुझे
सर्वनाश!!!
हाँ मुझे प्रेम है
प्रकृति से
ईश्वर की हर कृति से,
अगर बचना है
सर्वनाश से
तो आओ हम सब करें
प्रेम प्रकृति से
ईश्वर की हर कृति से!

14 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति माता है और माता को सम्र्पित कोई भी कविता दिल सए पढी जाती है और हृदय मेंस्थापित होती है! नीलेश भाई, बहुत दिनों बाद आपकी बहुत सुंदर कविता.. बस यही स्वर मुखरित हों आपके मुख से!! नव वर्ष मंगलमय और सुखमय हो!!

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  2. प्रकृति प्रेम से भरपूर रचना| धन्यवाद|

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  3. हाँ मुझे प्रेम है
    प्रकृति से
    ईश्वर की हर कृति से,
    और आगे ये पँक्तिया
    तो याद आते हैं मुझे
    बामियान के बुद्ध
    जिन्हें तालिबान ने
    जमींदोज किया था,
    जब दरख्तों के सीने पर
    चलते हैं खंजर
    बहुत सुन्दर लगीं सच मे हम प्रकृति से कैसा खेल खेल रहे हैं दुख तो होगा ही। बहुत अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।

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  4. शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

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  5. प्रकृति प्रेम को दर्शाती इस सुंदर भावपूर्ण कविता के लिये बधाई !

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  6. .

    हाँ मुझे प्रेम है
    प्रकृति से
    ईश्वर की हर कृति से,.....

    आपका प्रकृति प्रेम आपके ब्लॉग पर लगी बेहतरीन तस्वीरों से झलकता है।
    इस सुन्दर कविता के लिए बधाई।

    .

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  7. नीलेश जी.... बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता लिखी है। बिलकुल सही लिखा है आपने। इसके लिए आपको आभार साथ ही आपको नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ।

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  8. निलेश जी ,
    बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने... प्रकृति से प्रेम करने पर ही इंसान सही अर्थों में प्रेम को समझ पाता है... निस्वार्थ प्रेम का बेहतरीन उदहारण है प्रकृति प्रेम...प्रकृति के सान्निद्य में इंसान स्वयं के करीब चला आता है.. अपनी जड़ों को पा जाता है... बहुत बधाई आपको इस कृति के लिए

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  9. हाँ मुझे प्रेम है
    प्रकृति से
    ईश्वर की हर कृति से,.....

    बहुत ही अच्‍छी रचना ।

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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