जीने कि कला
सिखलाते हैं वो
भटके हुए को राह दिखलाते है वो,
होठों पर मुस्कान
सजाते हैं वो
ह्रदय में प्रेम के फूल
खिलाते हैं वो,
पाषाण ह्रदय
पिघला कर
प्रेम का दरिया
बहाते है वो,
अंधेरों से जब घिर जाते हैं हम
तब रोशनी बन कर आते हैं वो
और अँधेरे का विनाश कर
भोर कि पहली किरण
बन जाते हैं वो!
निश्छल उद्गार!!
जवाब देंहटाएंjai gurudev
जवाब देंहटाएंभावों को सुन्दर रूप दिया है ...जय गुरुदेव
जवाब देंहटाएंbhaavo kaa sahi chitran.जय गुरुदेव
जवाब देंहटाएंNilesh ji aapne Shri-Shri Ravishankar ji ke baare men bahut achha likha hai. Hume ye post pasand aayi. AApka prayaas safal raha.
जवाब देंहटाएंतो यहाँ भी श्री श्री का जादू चल गया है! उनके बारे में जितना कहें कम है. जय गुरुदेव !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! जय जय गुरुदेव!
जवाब देंहटाएंek sundar rachna.....
जवाब देंहटाएंMeri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......
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आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
जवाब देंहटाएंभारत के महान संत पुरुषों की की श्रेणी में से इन आचार्य श्रेष्ठ को प्रणाम !शुभकामनायें
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