शनिवार, 1 मई 2010

मजदूर दिवस पर!

एक मजदूर,
सपने भी शर्माते हैं
उसकी आँखों में आने से,

आ भी जाते हैं कभी
भूले भटके
तो बह जाते हैं उसके पसीने में
और कभी बूंदें बनकर
टपकते हैं उसकी आँखों से,

छोटे छोटे ही तो होते हैं
सपने उसके
बीमार माँ कि दवा के सपने
चूल्हे में लकड़ी के सपने
बेटे कि पढाई के सपने
बेटी कि मेहंदी के सपने
दो जून कि रोटी के सपने ,

परन्तु उसकी मेहनत के बदले
पैसे कम मिलते हैं
गालियाँ  ज्यादा,
उसके सपने
पूंजीपतियों की तिजोरियों में
दम घुट कर मर जाते हैं,

और एक दिन वो भी
सब सपनों को अधूरा छोड़
दम घुट कर मर जाता है
बोझ तले,

तब उसका मालिक
महानता दिखलाते हुए
लकड़ियों का दान करता है
उसे जलने के लिए
और महान कहलाता है !

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक चित्रण ... बहुत बढ़िया रचना..

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  2. आपने मज़दूर दिवस पर बहुत ही बढ़िया और मार्मिक रचना प्रस्तुत किया है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  3. का बात लिखे हैं भाई जी... भगवान आपका कलम का ताकत अऊर मन का भावना बनाए रखे.. हमरा तरह से आसिरवाद है... जियो!!

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  4. dil dahala gayee ....
    shahro me itna bura haal nahee hai.......
    aisaa mera sochana hai.......
    anytha na le.....
    badee hee marmik abhivykti bechargee kee ....

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  5. छोटे छोटे ही तो होते हैं
    सपने उसके
    बीमार माँ कि दवा के सपने
    चूल्हे में लकड़ी के सपने
    बेटे कि पढाई के सपने
    बेटी कि मेहंदी के सपने
    दो जून कि रोटी के सपने ,
    sach kaha hai apne ---majdoor to is desh ka ek bahut adana sa adamee hai ---iseeliye usake sapane bhee chhote hain----par yah bhee sach hai ki vahee adana majadoor in poonjeepatiyon kee neenv bhee taiyar karata hai---.
    Poonam

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  6. सच्ची भावना और ईमानदार अभिव्यक्ति... हमने अपने ब्लॉग पर किसान की दुर्दशा दर्शाई है और आपने मज़दूर की...

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NILESH MATHUR

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