शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

पहली किरण



चाहता हूँ कि 
सूर्य की पहली किरण बन
तुम्हारे घर के 
आँगन में आऊं,
और जाड़े की एक ठंडी सुबह 
तुम्हे जी भर के 
अपनी किरणों से नहलाऊं,
और तुम 
सराबोर हो कर 
सुनहरी किरणों के सौन्दर्य से 
फूलों की तरह खिल उठो
और एक सदी तक 
महकती रहो,
और मैं सदी के अंत तक
तुम्हें अपनी किरणों से
नहलाता रहूँ । 



17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्यारी सी कोमल सी रचना ! बहुत सुन्दर !

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  2. इस लाजवाब रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  3. बहुत खूब ,,,,,
    निलेश जी आप की रचनाये छूती हैं ....
    हमेशा की तरह एक अच्छी रचना ....

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  4. प्यारी सुंदर मनमोहक रचना अच्छी प्रस्तुति..बधाई
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है ...

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  5. बहुत भाव भरी पंक्तियाँ,सुन्दर रचना !

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  6. bahut hi bhawanaon se bhari bemisaal rachanaa bahut badhaai aapko.
    मुझे ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है , की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (१६)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /आपका
    ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए / जरुर पधारें /

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  7. बहुत खूब ...प्रेम की पराकाष्ठा है ... जबरदस्त भाव ...

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  8. चाहता हूँ कि
    सूर्य की पहली किरण बन
    तुम्हारे घर के
    आँगन में आऊं,
    bdi achchi chaht hai.

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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