रविवार, 7 अगस्त 2011

मेरे मित्र





गज्जू , मेरे दोस्त बहुत याद आते हो तुम....

 स्वर्गीय मित्र गजेन्द्र सिंह के साथ 
(1)

मेरे मित्र  
आज फिर से 
तुम्हारी याद आई
आँखें कुछ नम हुई 
और विगत स्मृतियों ने
बहुत रुलाया,

ख्यालों ही ख्यालों में सोचता हूँ 
कि तुमसे जब मुलाकात होगी 
तो बहुत सी बातें करूँगा
कुछ शिकवे कुछ शिकायत करूँगा,

पर ख्यालों की ये दुनिया
बड़ी बेरहमी से मुझे
यथार्थ के धरातल पर ले आती है
और ये अहसास कराती है
कि तुम तो वहां जा चुके हो 
जहाँ फ़रिश्ते रहते हैं,

पर मेरा विश्वास कहता है 
कि तुम वहां भी 
मुझे याद करते हो
तभी तो
आज भी तुम 
मेरे आस पास रहते हो!


(2)
हमने तो सोचा था 
सदा रहेगा साथ
तुम बीच राह 
छोड़ चले,

रेत की तरह 
फिसल गए हाथों से 
हम हाथ मलते रहे,


तुम जहाँ भी रहो
रोशनी दिखाना हमें 
अंधेरों से घिर गए हैं हम ,


सहेज कर रखा है 
मैंने उन सुनहरे पलों को 
जब हम गले लगा करते थे
मैं अपनी कहता था
तुम अपनी सुनाते थे,


पर अब 
किससे वो बातें करूँ
और किसको गले लगाऊँ !


13 टिप्‍पणियां:

  1. यादें तो यादें ही हैं कभी भी साथ नहीं छोडती हैं ............

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  2. 'मित्रता दिवस'पर मित्र की अनूठी याद प्रस्तुत की है। आपके दिवंगत मित्र सिंह साहब की आत्मा की शांति की हम कामना करते हैं।

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  3. प्यारों की यादें दर्दनाक होती हैं ....
    शुभकामनायें आपको !

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  4. आदरणीय नीलेश जी, आँखें भर आई आपकी इस संवेदनशील रचना को पढ़कर.. क्योंकि जो दिल से निकलती है वो सीधे दिल तक जाती है.. सही मायनो में यही सच्छी दोस्ती है जो जन्म-जन्मान्तर तक याद की जाती रहेगी..शरीर तो एक मिट्टी है जो मिटते में मिल जाता हा..पर उस मिट्टी की खुशबू साँसों में बसी रहती है..और वही खुशबू आपकी इन रचनाओं में हमने महसूस की..स्व. गजेन्द्र जी को मेरा ह्रदय से नमन और आपका कोटि-कोटि आभार !!

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  5. आपका मित्र जहां कहीं भी है, आपके ह्रदय की आवाज वहाँ अवश्य पहुंच रही है... प्रेम के लिए कोई बाधा नहीं न काल की न दूरी की. शुभकामनाये!

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  6. वाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति आभार के साथ शुभकामनाएं ।

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  7. bahut bura laga aapke mittr ke bare me janke...pr rachna bahut hi adbhud hai....wo jha khi bhi hai aapko jarur dekh rahe honge...aabhar

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NILESH MATHUR

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