आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
शुक्रवार, 1 मई 2015
मजदूर
बरसती हुई आग में अपने वज़न से ज्यादा भार पीठ पर लादकर मुस्कुराता है वो, अपने हाथों के छाले घरवालों से छुपाता है वो, बच्चों के साथ हँसता है खिलखिलाता है वो, वो मौजूद है हर तरफ हमारे इस तरफ हमारे उस तरफ, लेकिन क्या उसका हक़ अदा करते हैं हम??
वाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबधाई
विचारणीय प्रश्न...मजदूर दिवस पर शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंकहाँ कर पाते हैं हम ऐसा .. किसी भी मद्जूर को कहाँ कर पाता है कोई ...
जवाब देंहटाएंबहुत सी सुन्दर कविता, पढ़कर आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंNice shhare
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