हाँ मजदूर हूँ मैं
हाँ हाँ मजदूर हूँ मैं,
ढाओ सितम
जितना सामर्थ्य हैं तुममे
झुका सको जो मेरी पीठ
इतना सामर्थ्य नहीं तुममे,
हाँ मैं मजदूर हूँ
हाँ हाँ मजदूर हूँ मैं
तुम देखो
मेरे पसीने की हर बूंद
है तुम्हारी तिजोरी मे,
वक़्त नहीं शायद
तुम्हारे पास मेरे लिए
पर याद रखना
मैं भी मोहताज नहीं तुम्हारा,
तुम जानते हो
कि तुम्हारा कोई वजूद नहीं मेरे बिना.....
फिर भी आंखे बंद रखते हो,
कभी अगर जाग जाये
ज़मीर तुम्हारा
तो अदा कर देना
हक़ हमारा.....
श्रम एव जयते ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर - रचना । बधाई ।
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
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