सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात
हर सुबह फिर से ले आती है
अनगिनत चिंताओं की सौगात,
फिर से डरा सहमा सा
गुजारता हूँ दिन किसी तरह
छुपता हूँ मकान मालिक से
और सुनता हूँ ताने बीवी के,
हर सुबह निकलता हूँ घर से
बच्चों की फीस और
रासन की चिंता लिए
और दिन ढले फिर से
खाली हाथ लौट आता हूँ,
जीने की जद्दोजहद मे
और रोज़मर्रा की जरूरतों मे उलझा
मैं एक आम आदमी
बिता देता हूँ
आँखों ही आँखों मे सारी रात,
इस आस मे
कि कल तो होगी
एक नयी सुबह
जब मैं बच्चों को
बाज़ार ले कर जाऊंगा,
और बीवी को
एक नयी साड़ी दिलवाऊंगा,
एक नयी सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात मेरी
मैं हूँ एक आम आदमी।
acchi rachana !!
जवाब देंहटाएंaam admi ki jindgi ka yathath chitran...........
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जवाब देंहटाएंसुंदर भाव और सुंदर शब्द !
शुभकामनाओं सहित…
खूबसूरत इस दिल के अहसास
जवाब देंहटाएंरोज़ की एक नई चिंता ...बहुत खूब ..इसी का नाम तो जिंदगी हैं
जिंदगी एक पहेली है ....
जवाब देंहटाएंएक आम आदमी की जीवन-लीला व्यक्त करती हुई अतिसुंदर रचना |
बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह प्रस्तुति... आभार। मेरे पोस्ट "प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्द ... बहुत ही अच्छी लगी यह प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआम आदमी अगर आम ही रहकर जीना चाहता है तो कोई कुछ नहीं कर सकता...वरना सितारों से आगे जहाँ और भी हैं..
जवाब देंहटाएंजीवन की व्यथा की कथा...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
अनु
aam admi ka achcha chitran......
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