शनिवार, 14 जनवरी 2012

सूर्य की पहली किरण





वो 
सूर्य की पहली किरण बन 
मेरे घर के आँगन में आए 
और जाड़े की एक ठंडी सुबह 
मुझे जी भर के 
अपनी किरणों से नहलाया ,
और मैं 
सुनहरी किरणों के 
सौन्दर्य से सराबोर हो कर 
फूलों की तरह खिल उठा 
और शायद अब 
इन्ही फूलों की तरह 
महकता रहूँगा एक सदी तक ।  

16 टिप्‍पणियां:

  1. .
    बहुत ख़ूबसूरत , सादर.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें

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  2. अहसास कुछ ऐसे ही होतें हैं ..ता-उम्र साथ रहते हैं ...

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  3. कल 17/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. बिल्‍कुल सच कहा है आपने प्रत्‍येक पंक्ति में ..आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

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  5. Sundar rachna ....

    मेरे भी ब्लॉग में पधारें और मेरी रचना देखें |
    मेरी कविता:वो एक ख्वाब था

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NILESH MATHUR

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