आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
वाह बहुत खूब .........पर इस पत्थर की बस्ती में इंसान ही तो नहीं बसते है
nilesh bhaai kis trkib se insaan ko jaanvar kah daala hai or sch bhi yhi hai apil sundar hai ,, akhtar khan akela kota rasjthan
इंसान होना ही तो भूल गए हैं हम आज, कोई हिंदू है कोई मुसलमान मिलता नहीं ढूंढे से भी कोई इंसान!
बहुत खूब.....
काम मुश्किल ज़रुर है मागे नामुमकिन नहीं ..
aahwaan sahi hai...
काश आपकी बात अभी अभी सच हो जाए ... और सभी इंसान हो जाएं ... लाजवाब शेर ...
बहुत सुंदर संकल्प है .....शुभकामनायें आपको !
बहुत बढि़या।
वाह बहुत खूब .........पर इस पत्थर की बस्ती में इंसान ही तो नहीं बसते है
जवाब देंहटाएंnilesh bhaai kis trkib se insaan ko jaanvar kah daala hai or sch bhi yhi hai apil sundar hai ,, akhtar khan akela kota rasjthan
जवाब देंहटाएंइंसान होना ही तो भूल गए हैं हम आज, कोई हिंदू है कोई मुसलमान मिलता नहीं ढूंढे से भी कोई इंसान!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....
जवाब देंहटाएंकाम मुश्किल ज़रुर है मागे नामुमकिन नहीं ..
जवाब देंहटाएंaahwaan sahi hai...
जवाब देंहटाएंकाश आपकी बात अभी अभी सच हो जाए ... और सभी इंसान हो जाएं ... लाजवाब शेर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकल्प है .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत बढि़या।
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